बीजिंग॥ यूएसए के साथ ट्रेड वार व वायरस के कारण से चीन की आर्थिक स्थिति खराब हो गई है। ऐसे में वह अपनी सैन्य ताकत या व्यापारिक पकड़ की धमक दिखाने का प्रय़ास कर रहा है। हालांकि जानकारों का कहना है कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की राजनीतिक और कूटनीतिक पकड़ कमजोर हो रही है और उन्हें बड़ा झटका लगा है।
हिंदुस्तान की जवाबी कार्रवाई से भी चीन के सुप्रीम लीडर पर प्रश्न उठ रहे हैं। ऐसा कोई भी संकेत नजर नहीं आ रहा है जिससे पता चले की शी जिनपिंग का कम्युनिस्ट पार्टी पर प्रभावी नियंत्रण है। इस बार न सिर्फ चीन की हालत खराब हो रही है बल्कि राष्ट्रपति के हाथ से भी हालात निकलते नजर आ रहे हैं। 2015-16 के स्लोडाउन में चीनी प्रेसिडेंट की छवि पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा था मगर ये वक्त उनपर भारी पड़ रहा है। उस समय प्रेसिडेंट ने बिना अधिक मेहनत किए अपनी शाख बचा ली थी।
मंदी का सामना कर रहे ड्रैगन को इस बार कई देशों के गुस्सा का भी सामना करना पड़ रहा है जो कि पहले कई मामलों में चीन के साथ रहते थे। कोविड-19 के कारण चीन की बेज्जती हो गई है। चाइना के एलीट लोग अकसर पढ़ाई या फिर पर्यटन के लिए पश्चिमी देशों की सफर किया करते थे जो कि अब अपने ही देश में रहने को मजबूर हैं। जब से इंडिया ने चाइनिंज एप पर बैन लगाया है, तब से चाइना कमजोर पड़ गया है।
चीन का महत्वाकांक्षी प्रॉजेक्ट बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव (BRI) को भी जोरदार धक्का लगा है। इस प्रॉजेक्ट के माध्य्म से वह अपने राजनीतिक लक्ष्यों को हासिल करना चाहता था। चीन पर आरोप है कि उसने महामारी कोविड-19 को छिपाया और पूरे विश्व में फैला दिया। अब देश BRI के मामले में भी कर्ज की रीशेड्यूलिंग की मांग कर रहे हैं।
कई कड़वे अनुभवों के बावजूद शी जिनपिंग संस्कृति क्रांति के समय से ही कम्युनिस्ट पार्टी के वफादार माने जाते रहे हैं और उन्होंने अपने प्रयासों से पार्टी को पुनर्जीवित किया। शी ने अपने देश में भ्रष्टाचार के विरूद्ध भी क्रूर अभियान चलाया और विरोधियों को सख्त से सख्त सजा दी। स्पष्ट है कि चीन अपनी ताकत से पड़ोसियों को धमकाना चाहता था लेकिन हिंदुस्तान की जबरदस्त जवाबी कार्रवाई की उसको उम्मीद नहीं थी। चीन समंदर में भी मनमानी करने से बाज नहीं आ रहा है लेकिन जापान सहित कई देशों ने उसे कानूनों का पालन करने की धमकी दे दी है।