पिछले साल अक्तूबर माह में फेसबुक का नया नामकरण हुआ था। इसके बाद से कंपनी को मेटा (Meta) के नाम से जाना जाने लगा था। मेटा के सीईओ मार्क जुकरबर्ग का कहा था कि वे चाहते हैं कि दुनिया उनकी कंपनी को सिर्फ फेसबुक के तौर पर नहीं, बल्कि एक मेटावर्स के रूप में भी जानने लगे, लेकिन अब ऐसा लगता है कि दुनिया को कंपनी का नया नाम रास नहीं आ रहा है। बता दें कि नए नाम के बाद भी विवाद कंपनी का पीछा नहीं छोड़ रहा है।
मेटा ने अपने एक बयान में कहा है कि अगर अन्य देशों के साथ यूरोपियन यूजर्स का डाटा शेयर करने की अनुमति उसे नहीं दी जाती है तो उसे अपनी सेवाएं बंद करनी पड़ सकती हैं। मेटा ने अपने बयान में कहा है कि यूजर्स का डाटा शेयर न होने से उसकी सर्विसेज पर असर पड़ता है। यूजर्स डाटा के आधार पर ही कंपनी यूजर्स को विज्ञापन दिखाती है।
मेटा ने साफ कहा है कि वह साल 2022 की नई शर्तों को स्वीकार तो करेगा लेकिन अगर डाटा ट्रांसफर की सुविधा नहीं मिलती है तो उसे फेसबुक, इंस्टाग्राम समेत अपनी कई सेवाएं बंद करनी पर सकती है। बता दें कि अभी तक मेटा यूरोप के यूजर्स को डाटा अमेरिका सर्वर पर स्टोर कर रहा था लेकिन नई शर्तों में डाटा शेयर की मनाही कर दी गई है।
मेटा ने सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन का कहना है कि अगर जल्द-से-जल्द सर्विस को लेकर नया फ्रेम वर्क तैयार नहीं किया गया तो यूरोप के यूजर्स के लिए उसे अपनी सेवाएं बंद करनी पड़ सकती हैं। यूरोपियन यूनियन के कानून के अनुसार यूजर्स का डाटा यूरोप में नहीं रहना चाहिए जबकि मेटाका कहना है कि यूजर्स का डाटा शेयर करने की अनुमति मिले।
मेटा के मालिक मार्क जुगरबर्ग चाहते हैं कि यूरोप के यूजर्स का डाटा भी अमेरिकन सर्वर पर स्टोर हो। गौरतलब है कि पहले Privacy Shield कानून के अंतर्गत यूरोपीय डाटा को अमेरिकी सर्वर पर ट्रांसफर किया जाता था परन्तु इस कानून को जुलाई 2020 में यूरोपीय कोर्ट ने खत्म कर दिया।