नई दिल्ली।। अक्षय कुमार की फिल्म ‘पैडमैन’ कुछ ही दिनों में रिलीज होने वाली है। ये फिल्म ‘पैडमैन’ के नाम से मशहूर अरुणाचलम मुरुगनांथम के जीवन पर आधारित है। लेकिन अब हम आपको मध्यप्रदेश की ‘पैड वूमेन’ के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसने उन महिलाओं को जागरूक करने का बीड़ा उठाया है, जिन महिलाओं को पैड के बारे में जानकारी ही नहीं है।
बात हो रही है माया विश्वकर्मा की, जिन्होंने अमेरिका से लौटकर एमपी नरसिंहपुर के एक छोटे से गांव में सैनेटरी पैड बनाने की फैक्ट्री डाली है और उन्होंने महिलाओं के माध्यम से सैनेटरी पैड बनाने शुरू भी कर दिया है। उनका एकमात्र मकसद है, पीरियड्स और इससे जुड़ी अन्य समस्याओं के बारे में ग्रामीण महिलाओं को जागरूक करना।
बता दें कि माया ने यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, सैन फ्रांसिस्को में ‘ब्लड कैंसर’ पर शोध कार्य किया है। इसके बाद जब वह भारत लौटीं तो उन्होंने आम आदमी पार्टी ज्वाइन कर ली और नरसिंहपुर अपने गांव पहुंचकर काम करना शुरू कर दिया।
बधवार -स्वराज मुमकिन है किताब भी लिखी। हालाँकि वह पार्टी में ज्यादा दिन नहीं रहीं लेकिन दो साल पहले इन्हें ग्रामीण महिलाओं से मिलते हुये ये एहसास हुआ कि ग्रामीण क्षेत्र की महिलायें काफी परेशानी से गुजर रही हैं। उसी समय से माया विश्वकर्मा ने इस बारे में पूरी रिसर्च करना शुरू कर दिया। रिसर्च के बाद अब वह पूरी तरह से इसी काम जुट हुई हैं।
माया ने अमेरिका के अपने दोस्तों से इस बारे में चर्चा की और सैनेटरी नैपकीन बनाने का निर्णय किया। इसके लिये वह अरुणाचलम मुरुगनांथम से मिलने तमिलनाडु भी गईं। उनसे मिलने के बाद माया को लगा कि इस काम से समाज की बेहतर सेवा की जा सकती है।
माया विश्वकर्मा ग्रामीण महिलाओं के समूहों से मिल रही हैं और उन्हें पीरियड्स के बारे में जानकारी दे रही हैं, उसके नुकसान और समस्याओं के बारे में भी बता रही हैं। माया का कहना है कि, महिलाओं से पहले उनकी समस्यायें जानते हैं, इसके बाद फिर धीरे-धीरे उनसे पीरियड्स और दूसरी समस्याओं पर बात करती हूँ।
माया कहती हैं कि, जिस तरह से पीरियड्स और बच्चेदारी की समस्यायें आ रही हैं, उसके पीछे साफ-सफाई ही है। हमने तय किया है कि ग्रामीण महिलाओं और ट्राइवल क्षेत्र की महिलाओं को सैनेटरी पैड के साथ ही जागरूक भी करना है।
माया आगे कहती हैं कि, हमने इस काम को ‘सुकर्मा फाउंडेशन’ के जरिये शुरू किया है और इसके लिये महिलाओं की एक टीम बनाई है। फैक्ट्री में वह काम कर रही हैं और पैड बनने शुरू हो गये हैं। वह कहती हैं, शहरों की महिलाओं जागरूक होती हैँ, लेकिन गांवों की नहीं। उन्होंने बताया कि इसके लिये वो एक कैंपेन शुरू करने जा रहीं हैं, जिससे ग्रामीण और आदिवासी महिलाओं को जागरूक किया जायेगा।