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यूपी किरण ब्यूरो

लखनऊ।। मामला लखनऊ के राजाजीपुरम का है। ख्वाहिश है कि मैं फिर से फरिश्ता हो जाऊं मां से इस तरह लिपट जाऊं की बच्चा हो जाऊं।

कुछ-कुछ ऐसे ही भावनाएं बुजुर्ग रवींद्र कुमार भारती (65) की आंखों से आंसू बनकर उस वक्त छलक पड़ीं, जब उनकी खोई हुई मां सात साल बाद उनकी आंखों के सामने आई।

एक बच्चे की तरह फफक-फफकर मां के गले लग वह रो पड़े। अपनों के मिलने की उम्मीद खो चुकी बूढ़ी मां सुशीला देवी (85) लोहिया अस्पताल में भर्ती थीं। बेटे को सामने देख वह उसे अपलक निहारती रहीं और रोती रहीं।

मां-बेटे का यह मिलन देख वहां मौजूद हर किसी की आंखें नम हो गईं। यह दीगर है कि ये आंसू खुशी के थे। यह सब संभव हुआ लोहिया अस्पताल में तैनात डॉ. प्रवीण, पीआरवी 0509 पर तैनात एसआई पीएन दीक्षित,

कांस्टेबल प्रदीप सरोज और चालक मो. फाजिल के प्रयासों से। रविवार को ही रवींद्र कुमार मां को घर ले आए थे। राजाजीपुरम में मीना बेकरी के पास रहने वाले रवीन्द्र कुमार सीडीओ दफ्तर से रिटायर हैं।

पत्नी, एक बेटा और बेटी का छोटा सा परिवार है। उन्होंने बताया कि सुशीला देवी एक राजकीय विद्यालय से प्रधानाचार्या पद से 1993 में रिटायर हुईं थीं, वह सौतेली मां हैं।

रिटायरमेंट के बाद वह बेटी के घर गोमतीनगर में रहती थीं। बहनोई चंद्र प्रकाश एचएएल में इंजीनियर पद से सेवानिवृत्त हैं।

बकौल रवीन्द्र की मां काफी जिद्दी हैं। एक दिन अचानक बोलीं बेटी के घर जा रही हैं। कभी-कभी ही उनसे बात होती थी।

इस बीच लापता हो गईं, तब इसकी सूचना उन्हें मिली थी। इसके बाद उन्होंने ढूंढने का प्रयास किया पर नहीं मिलीं तो इसे तकदीर मानकर चुप बैठे रह गए।

सात साल बाद बीते रविवार को उन्हें मां के लोहिया अस्पताल में भर्ती होने की सूचना मिली थी।

सात साल पहले लापता हुईं बुजुर्ग रविन्द्र की मां सुशीला देवी को उनके परिवार से मिलाने का पूरा श्रेय पुलिस और डॉक्टरों को जाता है।

ड्यूटी के साथ-साथ उन्होंने सामाजिक दायित्व निभाकर एक मिसाल पेश की है। रविन्द्र ने कहा कि अपने जीवन में डॉक्टर और पुलिस का यह रुप पहली बार देखा है।

इसके लिए हमारा पूरा परिवार आजीवन आभारी रहेगा। वहीं बहु ने कहा कि सास को फिर से अपने पैरों पर खड़ा कर दूंगी। हमारे घर में रविवार को दीपावली और होली से भी बड़ा त्यौहार मनाया गया।

राम मनोहर लोहिया में तैनात इमरजेंसी मेडिकल ऑफिसर डॉ. प्रवीण शर्मा ने बताया कि पिछले सप्ताह बुधवार को उनकी ड्यूटी थी। दोपहर में एक वृद्घ महिला को बेहोशी की हालत में किसी ने अस्पताल में भर्ती कराया।

महिला के पास एक नंबर मिला, कॉल करने पर महिला ने उठाया। सुशीला के बारे में जानकारी दी तो उसने साफ शब्दों में आने और मिलने तक से मना कर दिया।

इसके बाद रविवार को जब सुशीला की हालत में सुधार हुआ तो दोपहर करीब 12 बजे पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना दी। सूचना पर पीआरवी 0509 पर तैनात पुलिसकर्मी पहुंचे।

बेटी-दामाद, बेटा-बहू और पोते-पोती सबके होते हुए एक बूढ़ी मां सात साल तक दर-दर की ठोकरें खाती रही, आखिर क्यों यह सवाल अहम है। इतने दिनों तक सुशीला कहां और किस हाल में रही, यह कौन जानता है। पर इतना तो यह है कि इतने सालों में उन्होंने बहुत दर्द झेला होगा।

फोटोः फाइल

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