
महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर बड़ा उलटफेर होने के संकेत मिल रहे हैं। उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे की बढ़ती नजदीकियां अब राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बन गई हैं। दोनों भाइयों की मुलाकातें और बदलते तेवर से सवाल उठने लगे हैं कि क्या यह साथ आना महा विकास अघाड़ी (MVA) के लिए खतरे की घंटी है?
उद्धव ठाकरे जहां शिवसेना (उद्धव गुट) का नेतृत्व कर रहे हैं, वहीं राज ठाकरे महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के प्रमुख हैं। दोनों की विचारधाराओं में काफी समानता है और मराठी अस्मिता को लेकर दोनों ही नेता खुलकर बोलते रहे हैं। हाल ही में हुई मुलाकातों से यह कयास लगाए जा रहे हैं कि दोनों ठाकरे भाई एक बार फिर एक मंच पर आ सकते हैं।
अगर ऐसा होता है, तो इसका सबसे बड़ा असर MVA यानी शिवसेना (उद्धव गुट), कांग्रेस और एनसीपी के गठबंधन पर पड़ सकता है। कांग्रेस और एनसीपी को यह डर सता रहा है कि अगर राज ठाकरे को गठबंधन में शामिल किया गया तो उनके पारंपरिक वोट बैंक में सेंध लग सकती है, खासकर शहरी और युवा मतदाताओं में।
राज ठाकरे की छवि एक आक्रामक नेता की रही है और उनका बीजेपी से भी कभी-कभार नजदीकी रुख देखा गया है। ऐसे में अगर उद्धव और राज एक साथ आते हैं, तो यह समीकरण बदल सकता है। यह गठबंधन न सिर्फ MVA में खींचतान ला सकता है, बल्कि बीजेपी के लिए भी चुनौती बन सकता है।
फिलहाल ठाकरे भाइयों के बीच बढ़ती बातचीत ने सियासी हलचल तेज कर दी है। अब देखना होगा कि आने वाले समय में यह नजदीकी किस दिशा में जाती है – सहयोग की ओर या सिर्फ रणनीतिक संकेत बनकर रह जाती है।
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