बीते कई महीनों से देशभर के सरकारी कर्मचारी पुरानी पेंशन योजना को फिर से शुरू करने की मांग कर रहे हैं. इस मांग को लेकर कुछ प्रदेशों के कर्मचारियों ने विरोध भी किया। कई कर्मचारी भी बीते सप्ताह सड़कों पर विरोध प्रदर्शन कर रहे थे. अब इस संबंध में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने घोषणा की है।
कुछ प्रदेश सरकारों ने इस संबंध में कर्मचारियों की मांगों को मान लिया है। मगर केंद्र सरकार पुरानी और नई पेंशन योजना को लेकर बीच का रास्ता निकालने की कोशिश कर रही है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शुक्रवार को वित्त विधेयक पेश करते हुए लोकसभा में कहा कि राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली में सुधार की जरूरत है.
फाइनेंशियल मिनिस्टर ने सरकारी कर्मचारियों की पेंशन से जुड़े मामलों में एनपीएस में सुधार के लिए एक समिति गठित करने का प्रस्ताव रखा। वित्त सचिव के नेतृत्व में एक कमेटी गठित की जाएगी।
कर्मचारियों की पुरानी पेंशन बहाली की काफी वक्त से चली आ रही मांग में बीच का रास्ता निकालने के लिए सरकार क्या कदम उठा सकती है? अब यही सवाल है। कहा जा रहा है कि सरकार सरकारी खजाने पर बिना अतिरिक्त बोझ डाले कर्मचारियों को खुश करने का तरीका ढूंढ रही है.
मोदी सरकार पुरानी पेंशन की मांग पर बीच का रास्ता निकालने की कोशिश कर रही है. सरकार दो विकल्पों पर विचार कर रही है। पहले विकल्प के रूप में, सरकारी कर्मचारियों को एनपीएस के तहत उनके पिछले वेतन का लगभग 50% गारंटीकृत पेंशन प्राप्त करने पर विचार किया जा रहा है। इस नियम के लागू होने से सरकारी खजाने पर बोझ डाले बिना मौजूदा एनपीएस में बदलाव किया जा सकता है।
केंद्रीय वित्त मंत्रालय इस संबंध में विचार कर रहा है। एनपीएस में कुछ बदलाव हो सकते हैं। रिटायरमेंट के बाद कर्मचारी को 41.7 फीसदी रकम एकमुश्त मिल सकती है। शेष 58.3% राशि का वार्षिकी के आधार पर लाभ उठाया जा सकता है।
यदि केंद्र/राज्य सरकार के योगदान से बने 58.3% फंड को 14% पर वार्षिक किया जाता है, तो एनपीएस में पेंशन अंतिम आहरित वेतन के 50% के करीब हो सकती है। इस संबंध में सरकार की ओर से कोई सरकारी बयान नहीं दिया गया है।
पुरानी पेंशन योजना में सबसे बड़ा लाभ अंतिम वेतन पर आधारित है। इसके साथ साथ यदि महंगाई की दर बढ़ती है तो डीए भी बढ़ता है। यहां तक कि जब सरकार नया वेतन आयोग लागू करती है तो इससे पेंशन बढ़ जाती है।
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