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Up Kiran, Digital Desk: अक्सर हम सुनते हैं कि किसी राज्य की विधानसभा ने कोई कानून पास किया, लेकिन वो राज्यपाल के पास जाकर अटक गया। पर कोई राज्यपाल किसी बिल को कब तक अपने पास रोककर रख सकता है? क्या इसकी कोई समय-सीमा होनी चाहिए? इसी बड़े सवाल पर सुप्रीम कोर्ट ने 10 दिनों तक सभी पक्षों को सुना और गुरुवार को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। अब जल्द ही इस पर देश का सबसे बड़ा फैसला आएगा।

मामला इतना बड़ा क्यों है: यह कोई आम मुकदमा नहीं है। इस मामले की गंभीरता इतनी है कि खुद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट से इस पर सलाह मांगी है। उन्होंने संविधान के तहत मिली अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए सुप्रीम कोर्ट से पूछा है कि क्या अदालतें राज्यपालों और राष्ट्रपति के लिए बिलों को मंजूरी देने की कोई समय-सीमा तय कर सकती हैं। राष्ट्रपति ने इस पर सुप्रीम कोर्ट से 14 सवाल पूछे हैं।

क्यों आई यह नौबत: यह पूरा विवाद तब शुरू हुआ जब तमिलनाडु, केरल, पंजाब और तेलंगाना जैसे कई राज्यों ने शिकायत की कि उनके राज्यपाल जान-बूझकर जनता के लिए बनाए गए कानूनों को पास नहीं कर रहे हैं। राज्यों का कहना था कि इससे चुनी हुई सरकार के काम में रुकावट आती है।

चीफ जस्टिस बी.आर. गवई की अगुवाई में पांच जजों की बेंच ने इस मामले की सुनवाई की। केंद्र सरकार की तरफ से बड़े वकीलों ने अपनी दलीलें दीं, तो वहीं राज्यों ने भी अपना पक्ष रखा। अब सभी की नजरें सुप्रीम कोर्ट पर टिकी हैं। अदालत का यह फैसला यह तय करेगा कि देश में चुनी हुई सरकार और राज्यपाल के बीच शक्तियों का संतुलन कैसा होगा।