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Up Kiran, Digital Desk: तेलंगाना सरकार ने राज्य के लगभग 3 लाख मुस्लिम परिवारों को पिछड़ा वर्ग (BC) के अंतर्गत आरक्षण देने की योजना को मूर्त रूप देना शुरू कर दिया है। मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार का यह फैसला लंबे समय से आर्थिक, शैक्षिक और सामाजिक पिछड़ेपन का सामना कर रहे मुस्लिम समुदायों के लिए राहत की सांस साबित हो सकता है। इन जातियों को पहले 4% आरक्षण मिलता था, लेकिन कानूनी अड़चनों और धार्मिक आधार पर उठे विवादों के चलते यह लाभ पूरी तरह से नहीं मिल पाया।

राज्य की कुल मुस्लिम आबादी में करीब 80% से अधिक लोग सामाजिक-आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग में हैं, जैसा कि फरवरी 2025 में जारी SEEPC (सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक, रोजगार और राजनीतिक जाति) सर्वे रिपोर्ट में बताया गया। रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि हैदराबाद के पुराने इलाके में मुस्लिम आबादी में कुछ कमी आ सकती है, क्योंकि कई महिलाएं गणना में शामिल नहीं हुईं।

पिछड़ा वर्ग आरक्षण बढ़कर अब 42% हुआ
तेलंगाना विधानसभा ने मार्च में एक विधेयक पास करते हुए पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण को पहले के 27% से बढ़ाकर 42% कर दिया है। यह बढ़ोतरी न केवल शिक्षा और सरकारी नौकरियों में बल्कि स्थानीय निकाय चुनावों में भी लागू होगी। अब इस विधेयक को राज्यपाल जिष्णु देव वर्मा द्वारा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के पास भेजा गया है, जहां से अंतिम मंजूरी का इंतजार है।

शिया समुदाय की दशा पर खास ध्यान
मुस्लिम समुदाय के अंदर विशेष रूप से शिया परिवारों की स्थिति चिंताजनक है। वरिष्ठ नेता और सरकार के सलाहकार मो. अली शब्बीर ने बताया कि करीब 3 लाख शिया परिवार न केवल आर्थिक रूप से पिछड़े हैं, बल्कि सरकारी योजनाओं का लाभ भी उन्हें मिलने में बाधा आ रही है। सर्वे में यह तथ्य भी सामने आया कि 10.08% मुस्लिम आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रही है।

समाज में व्याप्त पेशेवर जातिगत विविधता को भी ध्यान में रखते हुए, सैयद, मुगल, पठान, अरब, कोज्जा मेमन, आगा खानी और बोहरा जैसे समूहों को केवल धार्मिक पहचान के आधार पर नहीं, बल्कि उनके सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर आरक्षण दिया जाएगा।

राजनीतिक विवादों के बीच सरकार का पक्ष
बीजेपी की ओर से इस आरक्षण को धर्म आधारित बताकर आलोचना की गई, लेकिन मो. अली शब्बीर ने स्पष्ट किया कि अब तक इस बात को लेकर किसी ठोस आंकड़े का अभाव था। उन्होंने कहा कि सर्वे के माध्यम से मिले आंकड़े दिखाते हैं कि अधिकतर गरीब मुसलमान फल-सब्जी विक्रेता, ड्राइवर या कबाड़ी जैसे छोटे व्यवसायों में लगे हैं, जो उचित सरकारी सहायता के हकदार हैं।

आगे की संभावनाएं: SC-ST जैसी योजनाओं की राह पर
सरकार इस बात पर भी विचार कर रही है कि इन मुस्लिम जातियों को SC और ST समुदायों को मिलने वाले समान फायदे दिए जाएं। इसमें रोजगार में आरक्षण, छात्रवृत्तियां, उद्यमिता प्रोत्साहन और राजनीतिक प्रतिनिधित्व शामिल हैं। इससे न केवल सामाजिक समानता बढ़ेगी, बल्कि आर्थिक सशक्तिकरण की दिशा में भी बड़ा बदलाव आएगा।