यूपी चुनावों को हमेशा से जातीय चश्में से ही देखा जाता रहा है। राजनीतिक पंडित भी जातीय समीकरण के आधार पर चुनावी बाजीगरी की गुणा गणित लगाते रहे हैं। पर इस बार चुनाव (2022 Elections In India) में असर डालने वाले मसालों का तड़का थोड़ा अलग है। जाहिर सी बात है कि ऐसे में उसका जायका भी अलग होगा। अब चुनावी पंडितों के चश्मे उन बदलावों पर गौर कर पा रहे हैं या नहीं। यह अलग मसला है, पर ग्रामीण अंचलों से बह रही बयार मिशन 2022 का हाल बयां करने के लिए पर्याप्त है।
यहां यह जिक्र करना जरूरी है कि विधानसभा चुनाव 2017 के पहले भाजपा का वोट बैंक शहरी क्षेत्र व उसके आस पास के इलाकों को ही समझा जाता रहा है। सनातन धर्म के प्रतीक अयोध्या और काशी धाम के नवोदय ने आध्यात्मिक जायका पंसद वालों को लुभाया है तो फ्री अनाज, किसान सम्मान निधि, पेंशन में बढोत्तरी से ग्रामीण इलाकों के निवासी खुश हैं। मानो उन्हें उनकी मुंह मांगी मुराद मिल गयी हो। उधर जनप्रतिनिधियों के भत्तों में बढोत्तरी ने भी अंदरूनी तौर पर सरकार के पक्ष में माहौल बनाने का काम किया है। चूंकि विरोधी खेमे के छुटभैये नेता भी दबी जुबान में अब यह स्वीकार रहे हैं। उनका स्वीकार्य की कहानी ही उनकी व्यथा भी है। (2022 Elections In India)
उधर यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ की छवि एक तरफ नाथ सम्प्रदाय के विश्व प्रसिद्ध गोरक्षनाथ पीठ के महंत के तौर पर सन्यासी की है। दूसरी ओर राजनीति में कानून व्यवस्था को लेकर कड़ा रूख उनकी निष्पक्ष छवि को और धार दे रहा है। बतौर सन्यासी वह मुख्यमंत्री के रूप मेें सरकार चला रहे हैं। इन वजहों से भी उनके प्रति विभिन्न जाति व सम्प्रदाय से जुड़े वर्ग का विश्वास बढा है। हालांकि भाजपा की डबल इंजन की सरकार के कामों का मतदाताओं पर क्या असर पड़ेगा। यह चुनाव के नतीजों में ही स्पष्ट होगा। (2022 Elections In India)
दिल्ली सरकार ने कोरोना को लेकर उठाया बड़ा कदम, हर दिन इतने लाख परीक्षण की क्षमता