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Up Kiran, Digital Desk: देश में हर दूसरा व्यक्ति विटामिन-डी की कमी से परेशान है। कमजोर हड्डियां, बार-बार बीमार पड़ना, मांसपेशियों में ऐंठन और लगातार थकान जैसे लक्षण अब आम हो गए हैं। हैरानी की बात यह है कि भारत जैसे सूरज से भरे देश में भी लाखों लोग इस कमी का शिकार हैं। आखिर इसके पीछे वजह क्या है?

घर के अंदर कैद जीवनशैली

आज ज्यादातर लोग सुबह से शाम तक एसी ऑफिस या घर में बंद रहते हैं। बाहर निकलते भी हैं तो सनस्क्रीन, फुल स्लीव्स कपड़े या दुपट्टा लगाकर धूप से बचते हैं। प्रदूषण का डर भी लोगों को बाहर कदम रखने से रोकता है। नतीजा यह कि त्वचा तक सूर्य की किरणें पहुंच ही नहीं पातीं।

खाने में विटामिन-डी कहां है?

प्रकृति ने बहुत कम खाद्य पदार्थों में विटामिन-डी दिया है। फैटी मछली जैसे सैल्मन, टूना, अंडे की जर्दी और कुछ खास किस्म के मशरूम ही मुख्य स्रोत हैं। भारत में ये चीजें रोज की थाली में शायद ही आती हों। फोर्टिफाइड दूध या जूस भी हर घर में उपलब्ध नहीं होते।

गहरे रंग की त्वचा भी एक कारण

हमारी त्वचा में जितना ज्यादा मेलेनिन होता है, उतनी ही मुश्किल से सूरज की UVB किरणें विटामिन-डी बनाने का काम कर पाती हैं। यानी गोरे लोगों की तुलना में सांवले भारतीयों को दोगुना समय धूप में बिताना पड़ता है।

उम्र बढ़ने के साथ दिक्कत और बढ़ती है

बुजुर्गों की त्वचा पतली हो जाती है और किडनी भी विटामिन-डी को सक्रिय रूप में बदलने की ताकत खोने लगती है। इसलिए 60 साल से ऊपर के लोगों में यह कमी तेजी से देखी जा रही है।

मोटापा चुपके से खा जाता है विटामिन-डी

चर्बी में घुलनशील होने की वजह से यह विटामिन फैट सेल्स में फंस जाता है और खून तक नहीं पहुंच पाता। जितना ज्यादा वजन, उतनी ही ज्यादा कमी।

कुछ बीमारियां और दवाइयां भी जिम्मेदार

सीलियक डिजीज, क्रोह्न डिजीज, किडनी या लिवर की समस्या वाले मरीजों का शरीर विटामिन-डी सोख ही नहीं पाता। दवा लेने वालों में भी यह दिक्कत आम है, खासकर जो लोग लंबे समय तक एंटी-सीज़र या स्टेरॉयड दवाएं लेते हैं।

सर्दियों में तो और बुरा हाल

नवंबर से फरवरी तक धूप कमजोर पड़ जाती है। उत्तर भारत में कोहरा और ठंड की वजह से भी सूर्य की किरणें सही कोण पर नहीं पड़तीं। परिणामस्वरूप पूरे सीजन में विटामिन-डी का स्तर गिरता रहता है।