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Up Kiran, Digital Desk: तमिलनाडु के करूर में एक्टर विजय की रैली में 41 लोगों की मौत सिर्फ एक हादसा नहीं थी। यह स्टार पावर, बेहद खराब प्लानिंग और भीड़ जुटाने की राजनीतिक जिद का एक ऐसा जानलेवा कॉकटेल था, जिसका नतीजा पहले से ही तय था। यह कहानी है कि कैसे एक हीरो को देखने की दीवानगी, लापरवाही और सियासत ने मिलकर एक जश्न के माहौल को मातम में बदल दिया।

1. स्टार पावर का नशा: जब 'भगवान' को देखने उमड़ पड़ी भीड़

सबसे पहले यह समझना होगा कि जब कोई फिल्मी सितारा नेता बनता है, तो भीड़ सिर्फ भाषण सुनने नहीं आती, वह अपने 'भगवान' की एक झलक पाने आती है। विजय के साथ भी यही हुआ। लोग वहां एक नेता को नहीं, बल्कि अपने सुपरस्टार 'थलपति' को देखने के लिए घंटों से खड़े थे। इस तरह की भीड़ जुनून और भावनाओं से भरी होती है, जिसे संभालना किसी भी राजनीतिक रैली की भीड़ को संभालने से कहीं ज़्यादा मुश्किल होता है। यह दीवानगी ही इस हादसे की पहली और सबसे बड़ी वजह बनी।

2. बेहद खराब प्लानिंग: मौत को खुला न्योता

अधिकारियों का मानना है कि इस हादसे की दूसरी सबसे बड़ी वजह थी भयानक मिसमैनेजमेंट।

छोटी जगह, बड़ी भीड़: जिस जगह पर रैली रखी गई, वह इतनी बड़ी भीड़ के लिए बनी ही नहीं थी। अनुमान से कई गुना ज़्यादा लोग वहां पहुंच गए।

न बुनियादी सुविधाएं, न कंट्रोल: आयोजन स्थल पर न तो पीने के पानी का सही इंतजाम था, न ही भीड़ को कंट्रोल करने के लिए मजबूत बैरिकेडिंग। लोगों के आने-जाने के रास्ते साफ नहीं थे। जब भीड़ का दबाव बढ़ा, तो लोग एक-दूसरे पर गिरने लगे और उन्हें भागने तक की जगह नहीं मिली।

पुलिस की नाकामी: पुलिस और आयोजक, दोनों ही भीड़ के आकार का सही अंदाजा लगाने में पूरी तरह से फेल हो गए। जब तक उन्हें खतरे का एहसास हुआ, तब तक बहुत देर हो चुकी थी।

3. भीड़ दिखाने की सियासत: जान से कीमती 'फोटो-ऑप'?

इस हादसे का तीसरा और सबसे कड़वा सच है 'भीड़ की राजनीति'। राजनीति में भीड़ को ताकत का प्रदर्शन माना जाता है। हर पार्टी यह दिखाने की होड़ में रहती है कि उसके साथ कितने लोग हैं। इसी ताकत को दिखाने और एक सफल 'फोटो-ऑप' की चाहत ने शायद आयोजकों को सुरक्षा के नियमों को ताक पर रखने पर मजबूर कर दिया। अक्सर ऐसे आयोजनों में सुरक्षा से ज़्यादा भीड़ जुटाने पर ध्यान दिया जाता है, और इसी होड़ ने 41 जिंदगियों को मौत की नींद सुला दिया।