
Up Kiran, Digital Desk: नवरात्रि के नौ दिनों की भक्ति और उपवास का समापन एक बहुत ही सुंदर और दिल को छू लेने वाली परंपरा के साथ होता है, जिसे 'कन्या पूजन' या 'कंजक' कहते हैं। 30 सितंबर को दुर्गा अष्टमी और नवमी के शुभ अवसर पर, लगभग हर घर छोटी-छोटी बच्चियों की खिलखिलाहट से गूंज उठता है। यह सिर्फ एक रस्म नहीं है, बल्कि देवी के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट करने का एक बहुत ही पवित्र तरीका है।
लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर इन छोटी-छोटी बच्चियों को ही क्यों पूजा जाता है? चलिए, आज इस खूबसूरत परंपरा के पीछे छिपे गहरे अर्थ को समझते हैं।
क्यों पूजी जाती हैं छोटी कन्याएं: हिंदू धर्म में, खासकर नवरात्रि के दौरान, कुंवारी कन्याओं को मां दुर्गा का ही साक्षात स्वरूप माना जाता है। मान्यता है कि इन बच्चियों में देवी की वही पवित्रता, ऊर्जा और निश्छलता वास करती है। जिस तरह मां दुर्गा बुराई का नाश करती हैं और अपने भक्तों पर कृपा बरसाती हैं, उसी तरह यह माना जाता है कि इन छोटी देवियों को प्रसन्न करने से घर में सुख, शांति और समृद्धि आती है।
यह परंपरा हमें याद दिलाती है कि हर लड़की और महिला में देवी का अंश है, और हमें उनका सम्मान करना चाहिए।
कैसे किया जाता है कन्या पूजन:कन्या पूजन का तरीका बहुत ही सरल और भक्तिभाव से भरा होता है।
देवी का स्वागत: सबसे पहले, 2 से 10 साल की उम्र की नौ कन्याओं को (और साथ में एक लड़के को, जिसे 'लंगूर' या भैरव का रूप माना जाता है) सम्मान के साथ घर पर आमंत्रित किया जाता है।
चरण वंदना: घर आने पर, परिवार के सदस्य इन कन्याओं के पैर धोते हैं, ठीक वैसे ही जैसे किसी देवी के आगमन पर उनका स्वागत किया जाता है। फिर उनके पैरों को एक साफ कपड़े से पोंछकर उन पर 'आलता' लगाया जाता है।
पूजन और श्रृंगार: इसके बाद उनके माथे पर रोली और कुमकुम का टीका लगाया जाता है और उनकी कलाई पर पवित्र धागा (मौली) बांधा जाता है।
स्दिष्ट भोजन: पूजन के बाद इन कन्याओं को एक साथ बैठाकर प्रेमपूर्वक भोजन कराया जाता है। भोजन में खासतौर पर हलवा, पूड़ी और काले चने बनाए जाते हैं, जो मां को बहुत प्रिय हैं।
उपहार और दक्षिणा: भोजन के बाद कन्याओं को अपने सामर्थ्य के अनुसार तोहफे दिए जाते हैं, जैसे कि पढ़ाई-लिखाई का सामान, खिलौने, कपड़े या पैसे (दक्षिणा)।
आशीर्वाद: अंत में, उनके पैर छूकर उनसे आशीर्वाद लिया जाता है और उन्हें खुशी-खुशी विदा किया जाता है।
यह सिर्फ एक दिन की पूजा नहीं, बल्कि इस विश्वास का उत्सव है कि ईश्वर बच्चों की मासूमियत में बसता है। यह दिन हमें स्त्री शक्ति का सम्मान करना और अपने आसपास की बेटियों को महत्व देना सिखाता है।