Up Kiran, Digital Desk: क्या आपने कभी सोचा है कि हमारे देश में चुनावों को और ज़्यादा निष्पक्ष और पारदर्शी कैसे बनाया जा सकता है? ये वो सवाल है, जिस पर आज सीपीआई (कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया) के एक प्रमुख नेता राजा ने ज़ोरदार आवाज़ उठाई है. उन्होंने एक बार फिर देश में व्यापक चुनावी सुधारों (Comprehensive Electoral Reforms) की ज़रूरत पर बल दिया है. यह मुद्दा सिर्फ राजनीतिक दलों के लिए नहीं, बल्कि हर आम नागरिक के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे देश के लोकतंत्र का भविष्य जुड़ा है.
राजा ने चुनावी सुधारों पर क्यों दिया ज़ोर?
सीपीआई नेता राजा का मानना है कि वर्तमान चुनावी प्रणाली में कई कमियाँ हैं, जिन्हें दूर किया जाना बेहद ज़रूरी है. उनके इस आह्वान के पीछे कुछ प्रमुख कारण हो सकते हैं, जैसे:
- धनबल का दुरुपयोग: चुनावों में पैसे का बेतहाशा इस्तेमाल, जो अक्सर निष्पक्षता पर सवाल खड़े करता है. अमीर उम्मीदवार अक्सर गरीब उम्मीदवारों से ज़्यादा संसाधन जुटा लेते हैं.
- सत्ता का दुरुपयोग: सत्ताधारी पार्टियों द्वारा चुनाव आयोग पर कथित दबाव या सरकारी संसाधनों का चुनावों में उपयोग करना.
- प्रदर्शिता की कमी: चुनावी चंदे और राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता का अभाव, जिससे यह जानना मुश्किल होता है कि राजनीतिक दल अपना पैसा कहाँ से लाते हैं.
- मतदाताओं को लुभाना: मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए शराब और अन्य चीज़ों का वितरण.
- फेक न्यूज़ और दुष्प्रचार: सोशल मीडिया के दौर में फेक न्यूज़ और दुष्प्रचार भी चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित कर रहा है.
इन मुद्दों को हल करने के लिए राजा ने एक ऐसी प्रणाली की वकालत की है जहाँ चुनाव वास्तव में निष्पक्ष और सबके लिए समान अवसर प्रदान करने वाले हों.
क्या हो सकते हैं चुनावी सुधार?
चुनावी सुधारों में कई पहलुओं पर ध्यान दिया जा सकता है, जैसे:
- चुनावी बांड में पारदर्शिता: चुनावी चंदे को और अधिक पारदर्शी बनाया जाए ताकि स्रोत का पता लग सके.
- सरकारी फंडिंग: चुनावों के लिए आंशिक सरकारी फंडिंग, ताकि पैसे के प्रभाव को कम किया जा सके.
- चुनाव आयोग को अधिक शक्तियाँ: चुनाव आयोग को और ज़्यादा अधिकार दिए जाएं ताकि वह स्वतंत्र रूप से काम कर सके.
- उम्मीदवारों की जवाबदेही: आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों पर लगाम कसना.
- सोशल मीडिया रेगुलेशन: चुनावों के दौरान सोशल मीडिया पर फैलाई जाने वाली फेक न्यूज़ पर नियंत्रण.
राजा जैसे नेताओं की यह माँग दर्शाती है कि देश के लोकतांत्रिक भविष्य के लिए चुनावी प्रणाली में बदलाव बहुत आवश्यक है. अब देखना यह होगा कि यह आवाज़ कितना दूर तक जाती है और क्या वाकई हमारे देश में ऐसे व्यापक चुनावी सुधार हो पाते हैं, जिससे लोकतंत्र और भी ज़्यादा मज़बूत बन सके.



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