Up Kiran, Digital Desk: कभी-कभी इतिहास की सबसे बड़ी और सबसे गहरी पहेलियाँ किसी भव्य महल या पुरानी किताब में नहीं, बल्कि मिट्टी में दबे एक छोटे से टुकड़े में छिपी होती हैं। उत्तराखंड के रामनगर इलाके में वैज्ञानिकों को एक ऐसी ही बेशकीमती चीज़ मिली है - एक छोटा सा दांत का जीवाश्म (Fossil)। लेकिन यह कोई मामूली दांत नहीं है, यह उस कहानी का एक खोया हुआ पन्ना है, जिसे दुनिया भर के वैज्ञानिक सदियों से ढूंढ रहे थे।
क्या मिला है और यह इतना ख़ास क्यों है?
यह दांत आज से लगभग 1.3 करोड़ (13 मिलियन) साल पुराना है और यह एक ऐसे लंगूर (Gibbon) का है, जो आज के लंगूरों का सबसे पुराना ज्ञात पूर्वज माना जा रहा है।
इस खोज को और भी ज़्यादा रोमांचक यह बात बनाती है कि आज के समय में गिब्बन यानी लंगूर भारत में नहीं पाए जाते, वे अब चीन और दक्षिण-पूर्व एशिया के जंगलों में रहते हैं। तो फिर करोड़ों साल पहले उनका पूर्वज हमारे उत्तराखंड में क्या कर रहा था?
बस इसी सवाल के जवाब ने दुनिया भर के वैज्ञानिकों में हलचल मचा दी है।
यह खोज कैसे बदल रही है इतिहास?
आसान भाषा में समझें तो, इस खोज ने दो बहुत बड़ी बातों पर मुहर लगा दी है:
'लापता कड़ी' मिल गई: वैज्ञानिकों का मानना है कि इंसानों और वानरों (Apes) के पूर्वज अफ्रीका में पैदा हुए और फिर वहां से निकलकर एशिया और बाकी दुनिया में फैले। लेकिन अफ्रीका से एशिया तक के इस सफर की कहानी में एक बहुत बड़ी 'कड़ी' गायब थी। यह दांत का जीवाश्म वही 'मिसिंग लिंक' है। यह इस बात का सबसे पुराना और सबसे मज़बूत सबूत है कि हमारे सबसे पुराने रिश्तेदार अफ्रीका से निकलकर भारत के रास्ते ही आगे बढ़े थे।
भारत था विकास का केंद्र: यह खोज भारत को मानव विकास के नक्शे पर एक बहुत अहम जगह पर ला खड़ा करती है। यह बताता है कि हमारा देश करोड़ों साल पहले इन प्रजातियों के विकास और उनके फैलने का एक बहुत बड़ा केंद्र था।
किसने की यह ऐतिहासिक खोज?
यह महान खोज पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़ और वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान, देहरादून के वैज्ञानिकों की एक संयुक्त टीम ने की है। सालों की मेहनत के बाद मिला यह छोटा सा जीवाश्म, जिसे वैज्ञानिकों ने 'कपि रामनगरेंसिस' (Kapi ramnagarensis) नाम दिया है, अब हमें हमारे अपने ही अतीत को एक नई नज़र से देखने का मौका दे रहा है।


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