Up Kiran, Digital Desk: उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में एक के बाद एक मदरसों पर प्रशासन की कार्रवाई ने राज्यभर में बहस छेड़ दी है। नेपाल सीमा से सटे इस संवेदनशील ज़िले में पिछले तीन दिनों में छह गैर मान्यता प्राप्त मदरसों को सील कर दिया गया है। इनमें से एक मदरसा तो कथित रूप से कब्रिस्तान की जमीन पर बना हुआ था।
इस कदम को लेकर कुछ लोग इसे शिक्षा सुधार की दिशा में सख्त कार्रवाई कह रहे हैं, तो कुछ इसे एक खास समुदाय के खिलाफ की जा रही ‘निशानेबाज़ी’ बता रहे हैं। सच्चाई, शायद, इन दोनों के बीच कहीं छिपी है।
जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी संजय मिश्र का कहना है कि यह कार्रवाई पूरी तरह से कानून के तहत की जा रही है। उन्होंने बताया कि नेपाल सीमा से 10 किलोमीटर के दायरे में आने वाले 'बफर जोन' में अवैध या बिना मान्यता वाले मदरसों पर सख्त कार्रवाई की जा रही है।
कब्रिस्तान की ज़मीन पर बना मदरसा सील, दस्तावेज़ों में भारी खामियां
मोटीपुर तहसील के कंजडवा गांव में स्थित मदरसा 'मोहसिनुल उलूम' प्रशासन के रडार पर उस वक्त आया जब पाया गया कि यह कब्रिस्तान के लिए आरक्षित ज़मीन पर बना है। जब अधिकारी मौके पर पहुंचे और दस्तावेज़ मांगे, तो मदरसा संचालक कोई प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर सका। नतीजतन, प्रशासन ने तुरंत इसे सील कर दिया।
ऐसे मामलों में सबसे बड़ी चिंता यह है कि बच्चों की पढ़ाई प्रभावित न हो। इसी को ध्यान में रखते हुए जिला प्रशासन ने खंड शिक्षा अधिकारियों को निर्देश दिया है कि इन मदरसों में पढ़ रहे बच्चों का नजदीकी सरकारी विद्यालयों में प्रवेश कराया जाए। ताकि शिक्षा का अधिकार, जो कि हर बच्चे का संवैधानिक हक है, उससे कोई वंचित न रहे।
अंग्रेजी में नाम नहीं लिख पाए दसवीं के छात्र: गंभीर सवाल खड़ी करती शिक्षा व्यवस्था
मदरसा शिक्षा को लेकर सबसे बड़ा आरोप तब सामने आया जब बहराइच के एक मान्यता प्राप्त मदरसे का औचक निरीक्षण किया गया। निरीक्षण के दौरान अधिकारियों ने दसवीं कक्षा के छात्रों से अंग्रेजी में अपना और मदरसे का नाम लिखने को कहा—लेकिन हैरानी की बात यह रही कि एक भी छात्र ऐसा नहीं कर सका।
यह नतीजा न सिर्फ उस मदरसे की गुणवत्ता पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि एक बड़ी सच्चाई को भी उजागर करता है—क्या आज के मदरसे सिर्फ धार्मिक शिक्षा तक ही सीमित हो चुके हैं? क्या वहां पढ़ने वाले बच्चों को जीवन की मुख्यधारा से जोड़ने की कोई गंभीर कोशिश हो रही है?
निरीक्षण में यह भी पाया गया कि एक अध्यापक अनुपस्थित था, लेकिन उसकी अनुपस्थिति रजिस्टर में दर्ज नहीं थी। मुंशी, मौलवी और आलिम की कक्षाओं में छात्रों की उपस्थिति भी बहुत कम थी। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या इन मदरसों का संचालन केवल औपचारिकता बनकर रह गया है?
गैर मान्यता प्राप्त मदरसों पर विशेष फोकस: 495 मदरसों की पहचान, छह सील, दर्जनों को चेतावनी
बहराइच जिले में अभी कुल 301 मान्यता प्राप्त मदरसे हैं। हाल ही में किए गए एक सर्वेक्षण में 495 ऐसे मदरसों की पहचान की गई है, जो बिना मान्यता के चल रहे हैं। इनमें से छह को सील कर दिया गया है और दर्जनों को चेतावनी दी गई है कि वे या तो मान्यता प्राप्त करें या संचालन बंद करें।
यह अभियान केवल एक जिले तक सीमित नहीं है। राज्य सरकार का इरादा इसे पूरे प्रदेश में लागू करने का है। हालांकि यह एक साहसिक कदम है, लेकिन इसके साथ ही यह सुनिश्चित करना भी ज़रूरी है कि किसी निर्दोष संस्था या व्यक्ति को बिना उचित कारण के परेशान न किया जाए।
योगी आदित्यनाथ का स्पष्ट संदेश: “मदरसों को आधुनिक, पारदर्शी और रोजगारपरक बनाना जरूरी”
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाल ही में एक उच्चस्तरीय बैठक में मदरसा शिक्षा व्यवस्था की गहन समीक्षा की। उन्होंने कहा, “मदरसों को केवल मजहबी शिक्षा का केंद्र नहीं बनना चाहिए। वहां आधुनिक शिक्षा, तकनीकी ज्ञान और रोजगारपरक कौशल की भी पढ़ाई होनी चाहिए।”
उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति 2020 के तहत मदरसों के पाठ्यक्रम और शिक्षकों की अर्हता में बदलाव अनिवार्य है। इसके अलावा, शिक्षकों की चयन प्रक्रिया को भी पारदर्शी और निष्पक्ष बनाना ज़रूरी है, ताकि किसी योग्य उम्मीदवार को दरकिनार न किया जाए और योग्य शिक्षकों के माध्यम से ही बच्चों को बेहतर भविष्य मिल सके।
मुख्यमंत्री ने यह भी स्वीकार किया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा मदरसा बोर्ड की ‘कामिल’ और ‘फाजिल’ उपाधियों को असंवैधानिक ठहराने से नई चुनौतियां उत्पन्न हुई हैं। ऐसे में राज्य सरकार का उद्देश्य अब केवल सुधार नहीं, बल्कि नवाचार और समावेशिता की ओर बढ़ना है।
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