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Up Kiran, Digital Desk: इस साल 16 अगस्त 2025 को आने वाली श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, न केवल लड्डू गोपाल के जन्मोत्सव का पर्व है, बल्कि यह भीलवाड़ा की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और अनूठी परंपराओं को भी दर्शाती है। जहाँ देशभर में कृष्ण के जन्म का उल्लास मनाया जाएगा, वहीं भीलवाड़ा अपने विशेष 'बांसलवाल' (Bansalwal) परंपराओं और 'वेदानी पालक समाज' (Vedanai Payak Samaj) की भागीदारी से इस उत्सव को और भी खास बना देगा।

भीलवाड़ा में जन्माष्टमी: एक सांस्कृतिक झलक
जन्माष्टमी, जिसे गोकुलाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है, पूरे भारत में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है। लेकिन हर क्षेत्र की अपनी एक अलग पहचान और परंपरा होती है। भीलवाड़ा, अपनी सांस्कृतिक विविधता के लिए जाना जाता है, और जन्माष्टमी पर यहाँ की तैयारियां भी खास होती हैं। मंदिरों को भव्य रूप से सजाया जाता है, रात 12 बजे कान्हा के जन्म का उत्सव मनाया जाता है, और भक्तजन भक्ति में लीन हो जाते हैं।

 'बांसलवाल' परंपरा: भीलवाड़ा की विशेष पहचान 

यद्यपि 'बांसलवाल' (Bansalwal) परंपरा के विशिष्ट रीति-रिवाजों का विस्तृत विवरण सार्वजनिक रूप से आसानी से उपलब्ध नहीं है, लेकिन यह शब्द भीलवाड़ा क्षेत्र में जन्माष्टमी उत्सव के एक विशेष पहलू को इंगित करता है। ऐसी स्थानीय परंपराएं अक्सर समुदाय के सदस्यों द्वारा पीढ़ी-दर-पीढ़ी निभाई जाती हैं और उनमें विशेष प्रकार के भजन, लोकगीत, झांकियां या प्रसाद वितरण शामिल हो सकते हैं। ये परंपराएं जन्माष्टमी के पर्व को एक स्थानीय रंगत प्रदान करती हैं और समुदाय को एक साथ लाती हैं।

'वेदानी पालक समाज' का योगदान 

'वेदानी पालक समाज' (Vedanai Payak Samaj) का भी जन्माष्टमी उत्सव में योगदान विशेष हो सकता है। यह समुदाय, अपनी मान्यताओं और परंपराओं के अनुसार, उत्सवों में सक्रिय भूमिका निभाता है। उनका समर्पण और भागीदारी जन्माष्टमी के पर्व को और अधिक भव्य और अर्थपूर्ण बनाती है। संभवतः यह समाज विशेष पूजा-अर्चना, सांस्कृतिक कार्यक्रमों या सामुदायिक सेवा में योगदान देता हो, जो कान्हा के जन्मोत्सव के उल्लास को दोगुना कर देता है।

जन्माष्टमी 2025: भीलवाड़ा में उत्सव का माहौल 

इस वर्ष, 16 अगस्त 2025 (शनिवार) को भीलवाड़ा सहित पूरे देश में जन्माष्टमी मनाई जाएगी। मध्यरात्रि 12:04 बजे से 12:47 बजे तक पूजा का शुभ मुहूर्त रहेगा। इस दौरान, शहर के मंदिर, विशेष रूप से वीर हनुमान मंदिर और बद्रीनारायण मंदिर, भव्य झांकियों और विशेष आरती के साथ तैयार रहेंगे। 'बांसलवाल' और 'वेदानी पालक समाज' जैसी स्थानीय संस्थाएं और समुदाय भी अपनी विशिष्ट परंपराओं के साथ इस उत्सव में चार चांद लगाएंगे

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