
iran israel conflict: यमन में ईरान समर्थित हूती विद्रोहियों पर अमेरिकी हमलों ने मध्य पूर्व के जटिल भू-राजनीतिक समीकरण को एक बार फिर से चर्चा के केंद्र में ला दिया है। 15 मार्च से शुरू हुए इन हमलों ने न केवल क्षेत्रीय तनाव को बढ़ाया है बल्कि कई सवाल भी खड़े किए हैं। क्या अमेरिका मध्य पूर्व में शांति स्थापित करने की कोशिश कर रहा है या ये ईरान को सबक सिखाने की एक बनाई हुई रणनीति का हिस्सा है? विशेषज्ञों और रणनीतिकारों के बीच इस मुद्दे पर मतभेद साफ दिखाई दे रहे हैं।
हूती विद्रोही लंबे समय से लाल सागर में शिपिंग और इजराइल पर हमले कर रहे हैं। इन हमलों ने वैश्विक व्यापार और क्षेत्रीय सुरक्षा को खतरे में डाल दिया है। जवाब में अमेरिका ने यमन में भारी बमबारी शुरू की। अमेरिकी रक्षा मंत्री पीट हेगसेथ ने हाल ही में एक इंटरव्यू में कहा कि जब तक हमले जारी रहेंगे, हमारी कार्रवाई भी रुकेगी नहीं। अफसरों का मानना है कि हूती विद्रोहियों को ईरान से धन और प्रशिक्षण मिल रहा है, जिसके चलते यह संघर्ष केवल यमन तक सीमित नहीं है। अमेरिका ने इजरायल को ईरान के परमाणु स्थलों पर भी अटैक करनी की मंजूरी दे दी है।
कई विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका की ये रणनीति यमन से कहीं आगे की सोच रखती है। उनका कहना है कि असल मकसद ईरान को परमाणु कार्यक्रम पर दबाव में लाना और उसके सहयोगियों को कमजोर करना है। इसके लिए अमेरिका न केवल यमन बल्कि सीरिया और लेबनान में भी आक्रामक कदम उठा रहा है।
साथ ही इजराइल को ईरानी आतंकी ठिकानों पर हमले की खुली छूट दी गई। अब विशेषज्ञों को डर है कि इजरायल को मिली इस छूट से वो कई बेकसूरों का जान ले लेगा।