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आनंदपाल जिनका नाम इतिहास में गुम हो चुका था, अब फिर से राजस्थान में गूंज उठा है। अपराध की दुनिया में उन्होंने अपनी पहचान बनाई थी, और वे अब भी चर्चा में हैं, भले ही वे अब इस दुनिया में नहीं हैं। उनके कारनामों की चर्चा आज भी राजस्थान में होती है। आनंदपाल का नाम फिर से सुर्खियों में है क्योंकि सीबीआई ने उनके एनकाउंटर की क्लोजर रिपोर्ट खारिज कर दी है और उन अफसरों पर कार्रवाई के आदेश दिए गए हैं जिन्हें उस एनकाउंटर में शामिल माना गया था।

सन् 1997 में आनंदपाल ने बीएड की तैयारी के बीच गांव सांवराद में सीमेंट की एजेंसी शुरू की। इस दौरान आनंदपाल ने राजनीति की ओर मोड़ लिया। साल 2000 में उन्होंने लाडनूं पंचायत समिति का चुनाव लड़ा और सदस्य चुना गया। बाद में उन्होंने पंचायत समिति प्रधान के चुनाव में भी हिस्सा लिया, जिसमें उसे हार का मुंह देखना पड़ा। इसके बाद उनके समर्थकों और हरजीराम बुरड़क के समर्थकों के बीच संघर्ष शुरू हो गया।

तत्पश्चात, बुरड़क ने आनंदपाल के विरूद्ध कई मामले दर्ज करवाए, जिसमें उन्हें खूब टॉर्चर किया गया था। 2006 में उनकी गई हत्याओं के बाद, जिसमें छात्र नेता गोपाल फोगावट और जीवनराम गोदारा की मौजूदगी थी, उनकी जाति के कारण आनंदपाल को राजपूतों का समर्थन मिला।

जून 2006 में नागौर के डीडवाना के गोदारा मार्केट में आनंदपाल ने जीवनराम गोदारा की हत्या की, जिससे जाट समुदाय उनके विरोध में उठ खड़ा। इससे पहले उन्होंने मदन सिंह राठौड़ की हत्या का बदला लेने के लिए गोदारा को मार डाला था। उसी साल अप्रैल में उन्होंने एबीवीपी के छात्र नेता गोपाल फोगावट की भी हत्या की थी, जिससे दोनों गैंगों के बीच शार्प शराब तस्करी का संघर्ष शुरू हो गया।

आनंदपाल और राजू ठेहट गैंग के बीच के आक्रामक मामलों ने राजस्थान में गैंग वार को बढ़ा दिया, जिसमें दोनों गैंगों को राजनीतिक संरक्षण भी मिलने लगा।

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