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Up Kiran, Digital Desk: उत्तर प्रदेश की राजनीति में माफिया-राज के खात्मे की योगी आदित्यनाथ सरकार की मुहिम को एक और बड़ी सफलता मिली है। मऊ सदर विधानसभा सीट से विधायक रहे अब्बास अंसारी की विधानसभा सदस्यता समाप्त हो गई है। अफसरों को धमकाने के एक पुराने मामले में एमपी-एमएलए कोर्ट द्वारा 2 साल जेल की सजा सुनाए जाने के बाद यह कार्रवाई हुई है। इस घटनाक्रम ने पूर्वांचल की राजनीति में दशकों से अपना दबदबा बनाए रखने वाले अंसारी परिवार के गढ़ माने जाने वाले मऊ सदर सीट पर विधानसभा उपचुनाव का रास्ता खोल दिया है और साथ ही इस परिवार के राजनीतिक भविष्य पर भी गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं।

मुख्तार अंसारी की विरासत पर संकट

यह खबर अंसारी परिवार के लिए दोहरा झटका है क्योंकि ये मुख्तार अंसारी के निधन के कुछ ही महीनों बाद आई है। मुख्तार अंसारी जो 1996 से निरंतर इस सीट पर काबिज थे पहले विधायक रहे और फिर उनकी विरासत उनके बेटे अब्बास अंसारी ने संभाली। 2022 के विधानसभा चुनाव में जब मुख्तार जेल में थे अब्बास अंसारी ने ओम प्रकाश राजभर की सुभासपा के टिकट पर मऊ सदर सीट से जीत हासिल की थी। मगर अब अब्बास की विधायकी समाप्त होने के बाद मऊ सदर सीट पर 'अंसारी राज' का लगभग तीन दशक पुराना एकाधिकार समाप्त होता दिख रहा है।

एक दशक पुराना है अंसारी परिवार का दबदबा

अंसारी परिवार का मऊ विधानसभा सीट पर कब्जा 1996 से रहा है। मुख्तार अंसारी ने 1996 में पहली बार बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के टिकट पर मऊ सदर से जीत दर्ज की थी। इसके बाद वह निरंतर चार बार विधायक चुने गए – इसमें दो बार निर्दलीय और एक बार अपनी पार्टी कौमी एकता दल के टिकट पर और फिर 2017 में बसपा के टिकट पर। उनकी राजनीतिक यात्रा 1986 में उनके विरुद्ध दर्ज हुए पहले आपराधिक मामले के साथ शुरू हुई थी। मुख्तार अंसारी का खौफ सिर्फ पूर्वांचल ही नहीं बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश में बढ़ता चला गया और धीरे-धीरे वे राजनीति में कदम रखकर खुद को 'संरक्षण' देने लगे।

मुख्तार अंसारी ने 2002 और 2007 के विधानसभा चुनाव निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जीते जो उनकी व्यक्तिगत पकड़ और क्षेत्र में उनके प्रभाव को दर्शाता है। 2012 में उन्होंने अपनी पार्टी कौमी एकता दल से चुनाव लड़ा और विजयी रहे। 2017 में वह एक बार फिर बसपा के टिकट पर विधायक बने। मगर 2017 में उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनने के बाद से मुख्तार अंसारी और उनके परिवार के 'बुरे दिन' शुरू हो गए।

योगी सरकार का 'माफिया-राज' पर प्रहार

योगी आदित्यनाथ के सत्ता में आने के बाद माफियाओं के विरुद्ध 'जीरो टॉलरेंस' की नीति अपनाई गई। मुख्तार अंसारी इसका एक प्रमुख निशाना बने। 2017 के बाद एक के बाद एक मुख्तार के विरुद्ध दर्ज मुकदमों की कोर्ट में पैरवी तेज कर दी गई। साथ ही मुख्तार की अवैध संपत्तियों पर 'बुलडोजर' की कार्रवाई भी शुरू हुई जिसने राजनीतिक गलियारों में एक नया चलन स्थापित किया।

मुख्तार अंसारी जो 2019 तक बांदा जेल में बंद रहे ने उत्तर प्रदेश में अपनी सुरक्षा को खतरा बताते हुए राज्य से बाहर जेल ट्रांसफर की अर्जी लगाई। बाद में उन्हें पंजाब जेल ट्रांसफर कर दिया गया। मगर योगी सरकार उन्हें वापस यूपी लाने के लिए सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गई। मुख्तार अंसारी ने यूपी की जेल में आने से बचने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अपील की मगर यूपी सरकार ने यह कानूनी लड़ाई जीत ली और मुख्तार को पंजाब से वापस बांदा जेल लाया गया।

योगी सरकार की कार्रवाई केवल मुख्तार तक ही सीमित नहीं रही। उनके विरुद्ध कुल 65 मुकदमे दर्ज किए गए और उनके 250 से ज्यादा साथियों के विरुद्ध ताबड़तोड़ कार्रवाई की गई। मुख्तार अंसारी के कई कथित 'शूटर' भी यूपी पुलिस द्वारा 'ढेर' कर दिए गए। सरकार की कार्रवाई के चलते मुख्तार अंसारी और उनके करीबियों की 600 करोड़ रुपये से ज्यादा की संपत्ति भी जब्त की गई है।

अंसारी परिवार पर कानूनी शिकंजा

मुख्तार अंसारी के पूरे परिवार पर कई मामले दर्ज हैं। उनके एक भाई शिबगतुल्लाह अंसारी पर तीन केस दर्ज हैं तो वहीं बड़े भाई अफजाल अंसारी पर 7 मामले दर्ज हैं। हालांकि अफजाल अंसारी वर्तमान में गाजीपुर से समाजवादी पार्टी (सपा) के सांसद हैं। मुख्तार अंसारी की पत्नी अफशा अंसारी पर भी आधा दर्जन से ज्यादा मामले दर्ज हैं। वहीं अब्बास अंसारी की पत्नी निखत पर भी आधा दर्जन से ज्यादा मामले दर्ज हैं। मुख्तार के दूसरे बेटे उमर अंसारी पर भी कई मामले चल रहे हैं। यह कानूनी शिकंजा अंसारी परिवार के लिए चौतरफा चुनौती बन गया है।

बांदा जेल में मुख्तार का निधन और विरासत का सवाल

मार्च 2024 में मुख्तार अंसारी का बांदा जेल में निधन हो गया। उनके परिवार ने आरोप लगाया है कि उन्हें जेल में 'धीमा जहर' दिया जा रहा था और मुख्तार ने इस बात की शिकायत भी अपने परिवार से की थी। परिवार का यह भी दावा है कि मुख्तार का पोस्टमार्टम ठीक से नहीं किया गया। इन आरोपों की जांच जारी है मगर मुख्तार का निधन अंसारी परिवार के राजनीतिक किले के लिए एक बड़ा झटका साबित हुआ है।

अब जब अब्बास अंसारी की विधायकी समाप्त हो गई है और मुख्तार का निधन हो गया है तो बड़ा सवाल यह उठता है कि मुख्तार की सियासी विरासत कौन संभालेगा? इस सवाल के जवाब में अब्बास के छोटे भाई उमर अंसारी का नाम सामने आया है जो एक मामले में बरी हो चुके हैं। माना जा रहा है कि अगर मऊ सदर सीट पर उपचुनाव होता है तो उमर अंसारी समाजवादी पार्टी से टिकट लेकर चुनाव लड़ सकते हैं।

योगी के 'चक्रव्यूह' से निकलने की चुनौती

हालांकि उमर अंसारी के लिए हालात इतने आसान नहीं होंगे। उनके विरुद्ध भी कई मामले दर्ज हैं और अगर किसी मामले में उनके विरुद्ध फैसला आता है तो उनकी मुश्किलें भी बढ़ेंगी। ऐसे में अंसारी परिवार का सियासी अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने जिस तरह से माफिया और अपराधियों के विरुद्ध कार्रवाई की है उसे देखते हुए अंसारी परिवार के लिए इस 'चक्रव्यूह' से निकल पाना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन सा लग रहा है।

 

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