img

Up Kiran, Digital Desk: भारत और पाकिस्तान के बीच दशकों पुरानी सिंधु जल संधि अब फिर से विवाद के केंद्र में है, लेकिन इस बार मामला सिर्फ पानी तक सीमित नहीं है। हाल की घटनाओं से साफ है कि यह मुद्दा अब कूटनीतिक से ज़्यादा राजनीतिक रंग ले चुका है। जहां एक ओर भारत ने 22 अप्रैल को पहलगाम आतंकी हमले के बाद संधि को "निलंबित" करने का निर्णय लिया, वहीं पाकिस्तान की ओर से भड़काऊ प्रतिक्रियाएं लगातार सामने आ रही हैं।

आम जनता की चिंता: पानी या प्रचार?

प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने इस्लामाबाद में एक समारोह के दौरान यह दावा किया कि पाकिस्तान को मिलने वाला "एक बूँद" पानी भी भारत नहीं रोक सकता। उन्होंने भारत को चेतावनी देते हुए कहा कि कोई भी ऐसी कोशिश युद्ध के समान मानी जाएगी। लेकिन यह बयान ऐसे वक्त में आया है जब आम जनता बिजली संकट, महंगाई और खाद्य सुरक्षा जैसे गंभीर मुद्दों से जूझ रही है।

क्या यह बयान वाकई जल संकट को लेकर चिंता से प्रेरित है या फिर घरेलू राजनीतिक दबावों से ध्यान हटाने की कोशिश? विश्लेषकों का मानना है कि पाकिस्तान के नेता पानी को ‘राष्ट्रीय अस्मिता’ से जोड़कर जनता की भावनाओं को उभारने का प्रयास कर रहे हैं।

सेना भी मैदान में: असिम मुनीर का ‘डैम धमाका’

पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष जनरल असीम मुनीर ने अमेरिका में बसे पाकिस्तानी समुदाय को संबोधित करते हुए कहा कि अगर भारत ने पाकिस्तान की ओर बहाव रोकने के लिए कोई बांध बनाया, तो इस्लामाबाद उसे नष्ट कर देगा। उन्होंने कहा कि यह नदी किसी के खानदानी संपत्ति नहीं है।

उनका यह बयान न केवल अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान की छवि को कठघरे में खड़ा करता है, बल्कि क्षेत्रीय शांति के लिए भी चिंता का विषय है। सेना द्वारा इस तरह की सार्वजनिक धमकियां देना किसी लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा नहीं माना जाता।

पृष्ठभूमि: आतंकवाद और जवाबी कार्रवाई

भारत की ओर से सिंधु जल संधि को निलंबित करने का फैसला 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद लिया गया था, जिसमें 26 नागरिक मारे गए थे। इसके बाद भारत ने 7 मई को 'ऑपरेशन सिंदूर' के तहत पाकिस्तान और पीओके में आतंकी ढांचों को निशाना बनाया। चार दिन की क्रॉस-बॉर्डर स्ट्राइक और ड्रोन हमलों के बाद 10 मई को दोनों देशों ने युद्ध विराम पर सहमति जताई।

--Advertisement--