
Up Kiran, Digital Desk: भारत के इतिहास के एक काले अध्याय, 1975 में लगाई गई इमरजेंसी की 49वीं बरसी पर, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने कांग्रेस पर जोरदार हमला बोला है। भाजपा ने इसे 'लोकतंत्र की हत्या' और 'संविधान का दमन' बताते हुए कांग्रेस के 'वंशवादी अहंकार' और 'तानाशाही' को जिम्मेदार ठहराया।
तेलंगाना भाजपा अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री जी. किशन रेड्डी ने इस अवसर पर कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि 25 जून, 1975 का दिन भारतीय लोकतंत्र के लिए एक 'काला अध्याय' था। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने सत्ता बचाने और अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए देश पर आपातकाल थोपा, जिससे देश की जनता को अकल्पनीय कष्ट झेलने पड़े।
किशन रेड्डी ने इमरजेंसी के दौरान हुई ज्यादतियों को याद किया: "प्रेस पर कठोर सेंसरशिप थोपी गई, विपक्षी नेताओं को बिना किसी कारण के जेल में डाल दिया गया, और नागरिकों के मौलिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया।" उन्होंने उन प्रमुख नेताओं को याद किया जिन्हें उस दौरान गिरफ्तार किया गया था, जिनमें जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, मोरारजी देसाई और चंद्रशेखर जैसे दिग्गज शामिल थे। भाजपा ने इस बात पर जोर दिया कि उस समय उनके कई नेताओं और कार्यकर्ताओं को अमानवीय यातनाएं झेलनी पड़ीं।
भाजपा ने वर्तमान सरकार के कार्यों को इमरजेंसी के विपरीत बताया। किशन रेड्डी ने तर्क दिया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में 'लोकतंत्र को मजबूत' किया गया है। उन्होंने अनुच्छेद 370 को हटाना, नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) लागू करना, कृषि कानूनों को निरस्त करना और अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण जैसे फैसलों का जिक्र किया, और इन्हें 'लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुसार' लिया गया बताया। उन्होंने कहा कि ये सभी निर्णय संसद में चर्चा और बहस के बाद, लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का पालन करते हुए लिए गए।
उन्होंने इंदिरा गांधी के उस समय के फैसलों को 'तानाशाही' करार दिया, जिसमें 1975 में विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार करना और मौलिक अधिकारों को निलंबित करना शामिल था, जबकि पीएम मोदी के निर्णयों को 'लोकतांत्रिक' बताया गया, जिन्होंने 'देश के भविष्य को आकार दिया।'
यह बयान ऐसे समय में आया है जब भाजपा देश में लोकतंत्र की रक्षा के लिए अपनी प्रतिबद्धता को दोहरा रही है और इमरजेंसी को एक चेतावनी के रूप में पेश कर रही है कि सत्ता के केंद्रीकरण और असहमति के दमन से क्या हो सकता है।
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