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Up Kiran, Digital Desk: छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने प्रदेश में सुशासन और क़ानून का राज स्थापित करने का दावा किया है, लेकिन उनकी पार्टी के ही एक नेता की हरकतें इस दावे पर सवाल खड़े कर रही हैं। बीजेपी के एक प्रभावशाली नेता पर सरकारी जमीन पर जबरदस्त कब्जे और उसके खिलाफ प्रशासन की निष्क्रियता का आरोप लगा है।
सत्ता और रसूख के आगे झुका प्रशासन
अंबिकापुर के पार्षद आलोक दुबे, जो पहले कांग्रेस से बीजेपी में शामिल हुए हैं, स्थानीय स्तर पर अपने राजनीतिक प्रभाव के कारण चर्चा में हैं। सोशल मीडिया पर जनता की सेवा करते दिखने वाले ये नेता, वास्तविक जीवन में सरकारी जमीन पर अवैध कब्जे के आरोपों के घेरे में हैं।
उनके परिवार को सरगुजा रियासत के महाराज से 17 एकड़ जमीन दान में मिली थी, लेकिन अब आलोक दुबे के नाम लगभग 117 एकड़ सरकारी जमीन पर कब्जा दर्ज है। इस कब्जे के बाद यहां होटल और कई निर्माण कार्य चल रहे हैं, जिनमें से कुछ हिस्से प्लॉट में बांटकर बेचे भी गए हैं।
अदालत का फैसला और प्रशासन की चुप्पी
इस मामले की जांच में अदालत ने पूरी जमीन को सरकारी जमीन घोषित किया है और मामले में आपराधिक मुकदमा दर्ज करने के आदेश भी दिए हैं। बावजूद इसके, प्रशासन ने कार्रवाई करने से इनकार कर दिया है।
सरगुजा के कमिश्नर ने तहसीलदार को आठ बार पत्र लिखकर मामले में ठोस कदम उठाने को कहा, लेकिन तहसीलदार की ओर से कोई कार्रवाई नहीं हुई। अधिकारियों की इस नाकामी से कानून की दीवार कमजोर होती दिख रही है।
रसूख और रिश्तेदारी का प्रभाव
बताया जाता है कि आलोक दुबे के करीबी रिश्तेदार उच्च न्यायालय में न्यायाधीश हैं, जिसका असर प्रशासनिक कदमों पर पड़ा है। यही कारण है कि अधिकारियों ने एफआईआर दर्ज करने से परहेज किया है।
दुबारा हाईकोर्ट में रिट याचिका लगाने के बावजूद आलोक दुबे को राहत नहीं मिली और यथा स्थिति बनाए रखने का आदेश जारी हुआ।
सुशासन का मतलब क्या?
जब मुख्यमंत्री सुशासन का नारा देते हैं, लेकिन उनके ही पार्टी के नेता खुलेआम सरकारी जमीन पर कब्जा करते हैं और प्रशासन इस पर आंखें मूंदे बैठा रहता है, तो सवाल उठता है कि क्या छत्तीसगढ़ में सचमुच क़ानून का राज कायम हो पाया है?
सुशासन का मतलब सिर्फ घोषणाएं करना नहीं, बल्कि उन पर सख्ती से अमल करना भी है। अगर राजनीतिक दबाव कानून को प्रभावित करता रहे तो आम जनता का न्याय से भरोसा खत्म होगा।
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