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Up Kiran, Digital Desk: घोसी के समाजवादी पार्टी (सपा) विधायक सुधाकर सिंह के निधन को एक महीने से ज्यादा समय हो चुका है। इस दौरान, चुनाव आयोग की तरफ से उपचुनाव की घोषणा नहीं की गई है, लेकिन सपा ने स्व. सुधाकर सिंह के परिवार के प्रति सहानुभूति जताते हुए उनके बेटे, घोसी के पूर्व ब्लाक प्रमुख सुजीत सिंह को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है। इस कदम से पार्टी को राजनीतिक लाभ हुआ है। पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने मऊ में श्रद्धांजलि देते हुए सुजीत को चुनाव में उतारने का वचन दिया था।

एक दिन पहले ही गाजीपुर में सपा विधायक ओम प्रकाश सिंह के भतीजे के निधन पर संवेदना व्यक्त करने पहुंचे सपा के राष्ट्रीय महासचिव शिवपाल यादव ने सुजीत को टिकट देने की घोषणा कर इसे मंजूरी दे दी। पिछले घोसी उपचुनाव में पार्टी ने शिवपाल सिंह के मार्गदर्शन में चुनाव लड़ा था और सफलता पाई थी। अब उन्होंने जिला स्तरीय पार्टी पदाधिकारियों को प्रत्येक स्तर पर तैयारी शुरू करने का आदेश दिया है, ताकि आगामी उपचुनाव में पार्टी की स्थिति मजबूत हो सके।

वहीं, भारतीय जनता पार्टी (भा.ज.पा.) और सुभासपा भी अपने उम्मीदवारों का चयन करने के लिए विचार-विमर्श कर रही हैं। पिछले उपचुनाव में भाजपा का पूरा नेतृत्व घोसी में सक्रिय था, लेकिन फिर भी यह सीट भाजपा को नहीं मिल पाई थी। इस बार भाजपा नई रणनीति के तहत चुनावी मैदान में उतरेगी। 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा के उम्मीदवार दारा चौहान ने 108430 वोट प्राप्त कर भाजपा के विजय राजभर को 22216 वोटों से हराया था।

2023 के उपचुनाव में विधायक चुने गए सुधाकर सिंह ने 124295 वोट प्राप्त कर भाजपा के प्रत्याशी को 42672 वोटों से हराया था। इस उपचुनाव में भाजपा ने अपनी पूरी ताकत लगाई थी, जिसमें उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक, केशव मौर्य, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी सहित पार्टी के सभी प्रमुख नेता शामिल थे।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की जनसभाएं भी आयोजित हुई थीं, जिससे यह जाहिर होता है कि भाजपा इस उपचुनाव को हल्के में नहीं लेगी। पिछली हार से सीखते हुए भाजपा अपनी नई रणनीति के साथ चुनावी रणक्षेत्र में उतरेगी। सपा ने सुजीत सिंह को उम्मीदवार बना कर न केवल अपने कार्यकर्ताओं में उत्साह जगाया है, बल्कि यह भी दिखाया है कि पार्टी अपने पूर्व विधायक के परिवार के प्रति कितनी संवेदनशील है।

सुजीत सिंह के चुनावी मुकाबले में उतरने से पार्टी को एक युवा चेहरा मिलेगा, जो स्थानीय मुद्दों को समझता है और जनता के बीच अपनी पहचान बना चुका है। भाजपा की रणनीति इस बार अधिक प्रभावी हो सकती है, क्योंकि पार्टी ने पिछले चुनावों में मिली हार के बाद अपनी कमजोरियों को दूर करने का प्रयास किया है। भाजपा के नेता इस बार अधिक सक्रियता से प्रचार में जुटेंगे और जनता के बीच अपनी सफलताओं को उजागर करेंगे।

घोसी उपचुनाव में सपा और भाजपा दोनों ही अपनी-अपनी योजनाओं के साथ तैयार हैं। सपा ने पहले ही अपने उम्मीदवार की घोषणा कर बढ़त बनाई है, वहीं भाजपा भी अपनी नई रणनीति के साथ चुनावी मैदान में उतरने के लिए तैयार है। यह उपचुनाव केवल घोसी के लिए नहीं, बल्कि राज्य की राजनीति के लिए भी अहम साबित होगा। इस चुनावी माहौल में जनता की भूमिका भी महत्वपूर्ण होगी, क्योंकि वे ही तय करेंगे कि कौन सा प्रत्याशी उनके मुद्दों को सही ढंग से उठाता है और उनकी उम्मीदों पर खरा उतरता है। घोसी उपचुनाव की तैयारी में सभी दल अपनी पूरी ताकत झोंकने के लिए तैयार हैं।