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Up Kiran, Digital Desk: यह कहानी है एक ऐसी महिला की, जिसने ज़िंदगी के सबसे काले दौर को देखा, उससे बाहर निकली, और अब दूसरों की ज़िंदगी में उजाला भर रही है। हम बात कर रहे हैं 'बेबी डॉल' आर्ची, यानी अर्चिता फुकन की, जिनकी ज़िंदगी का सफ़र किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है, बल्कि सच्चाई और साहस की एक अद्भुत मिसाल है।

एक वक्त था जब अर्चिता सिर्फ 14 साल की थीं और उनके अपने ही माता-पिता उन्हें मुंबई लेकर आए। लेकिन नियति ने कुछ और ही खेल खेला था। उन्हें धोखे से वेश्यावृत्ति के उस दलदल में धकेल दिया गया, जहां से निकलना लगभग नामुमकिन होता है। यह सुनकर शायद आप चौंक जाएंगे कि अर्चिता किसी गरीब परिवार से नहीं थीं, फिर भी उन्हें भावनात्मक ब्लैकमेल और परिस्थितियों के जाल में फंसाकर इस भयावह दुनिया में खींच लिया गया।

अर्चिता ने अपने उस 'नरक' जैसे जीवन को छोड़ दिया है, लेकिन उसके लिए उन्हें एक भारी कीमत चुकानी पड़ी थी। कल्पना कीजिए, इस दलदल से बाहर निकलने के लिए उन्हें लगभग 25 लाख रुपये चुकाने पड़े थे – एक ऐसी कीमत जो उनकी आजादी के लिए थी, एक नई ज़िंदगी की शुरुआत के लिए थी। यह उनके दृढ़ संकल्प का ही नतीजा था कि उन्होंने उस अंधेरे से निकलने का रास्ता बनाया।

आज, 'बेबी डॉल' आर्ची एक प्रेरणा हैं। उन्होंने न केवल उस अंधेरे से खुद को बाहर निकाला, बल्कि अब वो उन बच्चों की 'मसीहा' बन गई हैं, जो रेड लाइट इलाकों के दलदल में फंसे हैं। वह 'सेव द ह्यूमैनिटी फाउंडेशन' नामक एक एनजीओ चलाती हैं, जिसके माध्यम से वह ऐसे बच्चों को बचाकर उन्हें एक नया जीवन देती हैं। इसके साथ ही, वह बेजुबान जानवरों के कल्याण के लिए भी काम करती हैं, उन्हें आश्रय और देखभाल प्रदान करती हैं।

अर्चिता फुकन की अनुमानित संपत्ति लगभग 50 करोड़ रुपये है, जो उनकी कड़ी मेहनत, लगन और सही राह पर चलने का प्रमाण है। उनकी कहानी सिर्फ एक महिला के संघर्ष की नहीं, बल्कि अदम्य साहस, इच्छाशक्ति और इंसानियत की मिसाल है। यह दिखाती है कि कैसे कोई व्यक्ति अपने सबसे बुरे अनुभवों को भी दूसरों की मदद करने की शक्ति में बदल सकता है, और समाज में एक सकारात्मक बदलाव ला सकता है। अर्चिता फुकन, वाकई एक 'बेबी डॉल' से बढ़कर, 'साहस की देवी' हैं।

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