Up kiran,Digital Desk : बरेली में इन दिनों प्रशासन का एक्शन मोड ऑन है और भू-माफियाओं की नींद हराम हो चुकी है। अगर आप सोच रहे थे कि कॉलोनाइजर मोहम्मद आरिफ की दो इमारतें गिराने के बाद मामला शांत हो गया है, तो आप गलत हैं। प्रशासन का 'बुलडोजर' अभी भी गर्म है और अब उसकी नजर आरिफ की सबसे पुरानी और बड़ी प्रॉपर्टी— 'फाइक एन्क्लेव' पर टिक गई है।
बता दें कि मोहम्मद आरिफ को आईएमसी प्रमुख मौलाना तौकीर रजा का करीबी माना जाता है। और जिस तरह से परतें खुल रही हैं, लगता है कि आरिफ का रसूख अब उनके काम नहीं आने वाला।
20 साल पुरानी कॉलोनी पर अब खतरा क्यों?
पीलीभीत बाइपास किनारे बनी फाइक एन्क्लेव कॉलोनी करीब दो दशक पुरानी है। लेकिन अब जो सच सामने आ रहा है, वह चौंकाने वाला है। मंडलायुक्त भूपेंद्र एस. चौधरी को जानकारी मिली है कि इस कॉलोनी की ज्यादातर जमीन असल में सरकार की है।
आरोप है कि यहाँ सीलिंग की जमीन, तालाब और चकमार्ग (सरकारी रास्ता) जैसी सरकारी संपत्तियों पर कब्जा करके कॉलोनी बसा दी गई। अब इसकी पुष्टि के लिए प्रशासन ने एसडीएम सदर की अगुवाई में एक टीम बनाई है। यह टीम राजस्व के पुराने कागजों से जमीन का मिलान करेगी। अगर जांच में जमीन सरकारी निकली (जो कि लगभग तय माना जा रहा है), तो वहां बने अवैध मकानों पर गाज गिरना तय है।
पुराने अधिकारियों (जैसे तत्कालीन कमिश्नर सौम्या अग्रवाल) के समय भी जांच हुई थी और एफआईआर तक दर्ज हुई थी, लेकिन तब मामला ठंडे बस्ते में चला गया था। मगर अब वैसा नहीं होगा।
बिना नक्शे के बने मकान और नोटिस का डर
सिर्फ जमीन का मामला नहीं है। खबर यह भी है कि फाइक एन्क्लेव में बने ज्यादातर मकानों का नक्शा ही पास नहीं है। बरेली विकास प्राधिकरण (बीडीए) ने ऐसे मकान मालिकों को नोटिस भेजा था, लेकिन लोगों ने जवाब देने की जहमत नहीं उठाई। बीडीए उपाध्यक्ष डॉ. मनिकंडन ए. ने साफ कर दिया है कि हम नियमों के तहत चलेंगे—अगर निर्माण अवैध पाया गया, तो कार्रवाई जरूर होगी।
होटल और मैरिज होम भी रडार पर
सिर्फ कॉलोनी ही नहीं, आरिफ की तीन और बड़ी कॉमर्शियल संपत्तियां मुश्किल में हैं:
- फहम लॉन 2. स्काई लार्क होटल 3.फ्लोरा गार्डन
बीडीए के संयुक्त सचिव दीपक कुमार के मुताबिक, इन तीनों इमारतों के लिए नक्शा तो पास कराया गया था, लेकिन निर्माण करते वक्त नियमों की धज्जियां उड़ाई गईं। बेसमेंट में पार्किंग होनी चाहिए थी, जो गायब है। निर्माण भी नक्शे से अलग किया गया है। चूंकि ये निर्माण 2016-17 से पहले के हैं, तब शायद रसूख के चलते फाइलें दब गई थीं, लेकिन अब नोटिस जारी हो चुके हैं।
निष्कर्ष: बरेली प्रशासन का संदेश साफ है—चाहे कोई कितना भी प्रभावशाली क्यों न हो, अगर जमीन सरकारी है या निर्माण अवैध है, तो कार्रवाई से बचना मुश्किल है।
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