Up Kiran, Digital Desk: बिहार का घोसी विधानसभा क्षेत्र, जो अपने राजनीतिक महत्व के लिए जाना जाता है, इस बार फिर सुर्खियों में है। 1977 से लेकर 2010 तक इस क्षेत्र की राजनीति एक ही नेता, जगदीश शर्मा के इर्द-गिर्द घूमती रही। शर्मा ने आठ चुनाव जीतकर अपनी छवि एक मजबूत नेता के रूप में बनाई थी, लेकिन अब यह सीट नई दिशा की ओर बढ़ रही है।
घोसी का इतिहास भी दिलचस्प है। यह सीट पहली बार 1951 में निर्दलीय उम्मीदवार रामचंद्र यादव के जीतने से चर्चा में आई थी। घोसी के मतदाता हमेशा से पार्टी की बजाय व्यक्तिगत विश्वसनीयता को तवज्जो देते आए हैं। यही कारण रहा कि जगदीश शर्मा ने इस सीट पर अपना राज स्थापित किया और उनके परिवार का प्रभाव कई सालों तक बना रहा।
2010 में शर्मा परिवार की राजनीति में हलचल:
जब जगदीश शर्मा ने 2009 में जहानाबाद से सांसद बनने के बाद घोसी विधानसभा सीट को छोड़ा, तब भी उनके परिवार की पकड़ कायम रही। उनकी पत्नी शांति शर्मा ने 2009 में उपचुनाव जीता और फिर उनके बेटे राहुल शर्मा ने 2010 में जद (यू) के टिकट पर इस सीट पर कब्जा जमाया। हालांकि, पिछले दो चुनावों में यह सीट शर्मा परिवार के हाथों से निकल गई, जो यह संकेत देता है कि मतदाता अब बदलाव चाहते हैं।
2020 का परिणाम: कृषि आधारित क्षेत्र में बदलाव की आहट
भाकपा (माले) के उम्मीदवार रामबली सिंह यादव ने 2020 के विधानसभा चुनाव में यह सीट 17,000 से अधिक मतों के अंतर से जीत ली थी। इस बार, यादव एक बार फिर घोसी सीट पर अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। उनकी उम्मीदवारी यह दिखाती है कि इस निर्वाचन क्षेत्र में बदलाव की संभावना पूरी तरह से बनी हुई है।
ऋतुराज कुमार का उभरता हुआ चेहरा:
घोसी में इस बार NDA ने एक नए चेहरें, ऋतुराज कुमार को मैदान में उतारा है। वे पूर्व सांसद अरुण कुमार के पुत्र और झारखंड भाजपा के पूर्व अध्यक्ष रवींद्र कुमार राय के दामाद हैं। ऋतुराज कुमार को एक युवा, शिक्षित और गतिशील नेता के रूप में देखा जाता है, और इस बार उनके पक्ष में दो पूर्व सांसदों की भी सक्रिय भागीदारी है। यह उम्मीदवारी यह दर्शाती है कि NDA इस सीट पर फिर से अपनी पकड़ बनाने के लिए पूरी तरह से तैयार है।
महागठबंधन और NDA के बीच रोमांचक मुकाबला:
जैसे-जैसे चुनावी प्रचार तेज हो रहा है, दोनों प्रमुख राजनीतिक गठबंधन—महागठबंधन और NDA—हर संभव प्रयास कर रहे हैं कि वे घोसी के मतदाताओं को आकर्षित कर सकें। स्थानीय मुद्दे और बदलते राजनीतिक समीकरण इसे एक उच्च-दांव वाली चुनावी लड़ाई बना रहे हैं, जो आने वाले वक्त में इस क्षेत्र की राजनीतिक दिशा तय कर सकती है।
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