Up kiran,Digital Desk : क्या आपके फ़ोन में एक 'सरकारी जासूस' आने वाला था, जिसे आप चाहकर भी डिलीट नहीं कर सकते थे? जी हाँ, यह डर हक़ीक़त बनने ही वाला था, लेकिन हंगामे, विरोध और एप्पल-गूगल जैसी बड़ी कंपनियों के अड़ियल रवैये के बाद, आख़िरकार केंद्र सरकार ने अपना फ़ैसला वापस ले लिया है।
तो हुआ क्या था, चलिए पूरी कहानी समझते हैं...
कुछ दिन पहले सरकार ने सभी मोबाइल फ़ोन कंपनियों को एक आदेश दिया था कि अब से हर नए फ़ोन में 'संचार साथी' (Sanchar Saathi) नाम का एक सरकारी ऐप पहले से ही डालकर (Pre-install) बेचना होगा।
और सबसे बड़ी और डराने वाली बात यह थी कि इस ऐप को न तो आप बंद कर सकते थे और न ही डिलीट! यह आपके फ़ोन का एक ऐसा हिस्सा बनने वाला था, जिसे आपको हर हाल में अपने साथ रखना पड़ता।
बवाल क्यों मचा?
यह ख़बर आते ही प्राइवेसी और जासूसी को लेकर एक बड़ा बवाल खड़ा हो गया। लोगों को डर सताने लगा कि इस ऐप के ज़रिए सरकार उनकी हर गतिविधि पर नज़र रख सकती है।
इस आग में घी डालने का काम किया एप्पल (Apple) और गूगल (Google) ने। इन दोनों कंपनियों जो दुनिया के सबसे बड़े मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम- iOS और Android बनाती हैं, सरकार के इस आदेश को मानने से साफ़ इनकार कर दिया। उनका कहना था कि ऐसा करने से उनके फ़ोन की सिक्योरिटी और यूज़र्स की प्राइवेसी से समझौता होगा, जिसे वे कभी नहीं कर सकते।
पहले सफ़ाई, फिर सरकार का यू-टर्न
बढ़ते विरोध को देखते हुए दूरसंचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पहले तो सफ़ाई देने की कोशिश की। उन्होंने कहा, "जासूसी न तो संभव है, और न ही की जाएगी," और यह भी कहा कि "लोग चाहें तो ऐप डिलीट कर सकते हैं।"
लेकिन तब तक बात बहुत आगे बढ़ चुकी थी। चौतरफ़ा दबाव के बाद, आज सरकार ने आख़िरकार अपना यह विवादित आदेश वापस ले ही लिया।
आख़िर क्या बला है यह 'संचार साथी' ऐप?
वैसे यह ऐप आपके काम का ही है। इसके ज़रिए आप अपना खोया हुआ फ़ोन ट्रैक कर सकते हैं, फ़र्ज़ी कॉल्स और मैसेज की शिकायत कर सकते हैं, और यह भी पता लगा सकते हैं कि आपका फ़ोन असली है या नक़ली।
यानी सरकार की नीयत तो अच्छी थी, लेकिन इसे लागू करने का तरीक़ा पूरी तरह से ग़लत था। किसी की भलाई के नाम पर आप उसकी आज़ादी और प्राइवेसी नहीं छीन सकते।
फ़िलहाल, यह आपकी प्राइवेसी की एक बड़ी जीत है। अब यह पूरी तरह से आपकी मर्ज़ी होगी कि आप इस ऐप को अपने फ़ोन में रखना चाहते हैं या नहीं।
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