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Up Kiran, Digital Desk: बिहार विधानसभा उपचुनाव का बिगुल बज चुका है। 6 और 11 नवंबर को दो चरणों में वोट डाले जाएंगे। सभी राजनीतिक दल मैदान में उतर चुके हैं, लेकिन इस बार मुकाबला सिर्फ पार्टियों का नहीं, बल्कि गठबंधनों के अंदरूनी समीकरणों का भी है।

एनडीए जहां संगठित दिख रहा है, वहीं महागठबंधन के खेमे में सीटों को लेकर खींचतान ने उसके सामने नई चुनौतियां खड़ी कर दी हैं।

सीटों के बंटवारे पर सहमति नहीं, बढ़ी अंदरूनी कलह

महागठबंधन में शामिल राजद, कांग्रेस, वीआईपी, और वाम दलों के बीच सीटों के तालमेल को लेकर मतभेद खुलकर सामने आ चुके हैं। सूत्रों के मुताबिक, कम से कम 12 सीटों पर घटक दल आपस में भिड़ गए हैं। इन सीटों पर एक-दूसरे के खिलाफ उम्मीदवार खड़े किए जा चुके हैं, जिससे विपक्षी मतों का विभाजन तय माना जा रहा है।

जैसे कि नरकटियागंज, कहलगांव, सुल्तानगंज और सिकंदरा जैसे क्षेत्रों में कांग्रेस और राजद आमने-सामने हैं। वहीं, बछवाड़ा और राजापाकर जैसी सीटों पर कांग्रेस और भाकपा आमने-सामने हैं। बाबूबरही और चैनपुर में राजद और वीआईपी में सीधा टकराव है।

सीट शेयरिंग की खींचतान ने खोली पोल

राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो गठबंधन में इस बार तालमेल की भारी कमी देखने को मिल रही है। कांग्रेस चाहती थी कि उसे 70 सीटें मिलें जबकि वीआईपी 50 सीटों पर दावा ठोक रही थी। मगर राजद ने अपनी पकड़ ढीली नहीं की। वामपंथी दलों ने भी 2020 के प्रदर्शन को आधार बनाकर ज्यादा हिस्सेदारी की मांग की है।

2020 के नतीजों की बात करें तो भाकपा-माले ने 12 सीटें, भाकपा ने 2 और माकपा ने भी 2 सीटें जीतकर दिखा दिया था कि उनका आधार कमजोर नहीं है।

एनडीए को मिल सकता है सीधा लाभ

इस भ्रम और आपसी असहमति का फायदा सीधे तौर पर एनडीए को मिल सकता है। जब विपक्ष खुद ही बंटा हो, तो सत्ताधारी गठबंधन के लिए राह आसान हो जाती है। यही बात चिराग पासवान ने भी दोहराई। उन्होंने कहा, “इतना बड़ा गठबंधन अब खुद टूटने के कगार पर है। कई सीटों पर महागठबंधन की 'दोस्ताना लड़ाई' ने हमें वॉकओवर दे दिया है।”

चिराग ने ये भी कहा कि एक ही सीट पर दो विरोधी दलों के उम्मीदवार होना कहीं से भी समझदारी नहीं है। यह मतदाताओं के लिए भ्रम की स्थिति पैदा करता है और गठबंधन की रणनीति पर सवाल खड़े करता है।