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Up Kiran, Digital Desk: राजधानी के दक्षिण-पूर्वी इलाके में बसे जामिया नगर की गलियों में इन दिनों खामोशी के साथ डर पसरा हुआ है। दीवारों पर चिपके सरकारी नोटिस, मकानों के बाहर सन्नाटा और निवासियों की बेचैन निगाहें—ये सब एक आसन्न संकट की तस्वीर पेश कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग की जमीन पर अतिक्रमण के आरोप में यहां कई घरों और दुकानों को खाली करने के आदेश जारी किए गए हैं। इन ढांचों पर अगले 15 दिनों में बुलडोजर चल सकता है।

नोटिस का हवाला, कोर्ट का आदेश

ताजा सरकारी नोटिस के अनुसार, "ओखला स्थित खिजरबाबा कॉलोनी में उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग की ज़मीन पर अवैध अतिक्रमण हुआ है। इस जमीन पर खड़े मकान और दुकानें गैर-कानूनी हैं और इन्हें हटाना अनिवार्य है।" अधिकारियों का कहना है कि यह कार्रवाई 8 मई को सुप्रीम कोर्ट द्वारा डीडीए को दिए गए निर्देश के पालन में हो रही है, जिसमें कानून के तहत अनधिकृत ढांचों को ध्वस्त करने को कहा गया है।

तैमूर नगर से जामिया नगर तक: कार्रवाई की कड़ी

यह पहली बार नहीं है जब दिल्ली के दक्षिणी हिस्से में अतिक्रमण के नाम पर बड़े पैमाने पर तोड़फोड़ की तैयारी हो रही है। इसी महीने की शुरुआत में, तैमूर नगर नाले के पुनर्निर्माण को लेकर 100 से अधिक झुग्गियों को तोड़ा गया था। वहां रहने वालों को मात्र कुछ दिनों का नोटिस मिला, और अब वही कहानी जामिया नगर में दोहराई जा रही है।

कई निवासियों का कहना है कि उन्हें न तो वैकल्पिक व्यवस्था की जानकारी दी गई, न पुनर्वास की योजना का कोई जिक्र है। करीब 40 वर्षों से जामिया नगर में रहने वाले मोहम्मद हनीफ कहते हैं, "अगर हमारा रहना अवैध था, तो इतने साल क्यों चुप रहे। अब हम अपने बच्चों को लेकर कहां जाएं।"

अवैध कौन, जिम्मेदार कौन

इस पूरे मामले में सबसे बड़ा सवाल यह है कि अगर ये मकान और दुकानें वाकई अवैध थीं, तो इनका निर्माण कैसे हुआ और किसकी निगरानी में? क्या स्थानीय प्रशासन, नगर निगम और भूमि प्रबंधन से जुड़े विभाग इस निर्माण के दौरान अंधे थे?

मानवाधिकार बनाम मास प्लान

अतिक्रमण हटाने की कार्रवाइयों को अक्सर शहरी विकास और मास्टर प्लान की जरूरत के तहत जायज़ ठहराया जाता है, मगर जब यह कार्रवाई समाज के सबसे कमजोर तबकों पर हो और उनके लिए कोई वैकल्पिक इंतज़ाम न किया जाए, तो यह मानवाधिकारों की अनदेखी मानी जाती है।

राजनीतिक चुप्पी और सामाजिक आक्रोश

इस मामले में अब तक कोई भी बड़ी राजनीतिक पार्टी सामने नहीं आई है। तो वहीं इलाके में तनाव और असंतोष लगातार बढ़ रहा है। सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि कोर्ट के आदेशों का पालन ज़रूरी है, मगर मानवीय दृष्टिकोण अपनाए बिना किसी को उजाड़ना समाधान नहीं।

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