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भारत में लगभग 70 प्रतिशत कार्डियक अरेस्ट के मामले अस्पताल के बाहर होते हैं। ऐसे हालात में तुरंत चिकित्सा सहायता मिल पाना कठिन होता है। इसी वजह से अगर कोई आस-पास मौजूद व्यक्ति सही समय पर कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन (सीपीआर) कर दे, तो यह किसी की जान बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। यह बात स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा 13 से 17 अक्टूबर तक आयोजित सीपीआर जागरूकता सप्ताह के दौरान जोर देकर कही गई।

बीएचयू में सीपीआर प्रशिक्षण कार्यक्रम

गुरुवार को काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के फार्माकोलॉजी विभाग में एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसमें उपस्थित लोगों ने न केवल सीपीआर के महत्व को समझा, बल्कि इसे सीखकर दूसरों तक भी फैलाने का संकल्प लिया। यह कार्यक्रम प्रोफेसर डॉ. किरण गिरी के नेतृत्व में आयोजित हुआ, जबकि डॉ. वेद प्रकाश ने मार्गदर्शन प्रदान किया। यह पहल प्रतिकूल दवा प्रतिक्रिया निगरानी केंद्र के अंतर्गत संचालित हो रही है।

लाइव डेमो से सीपीआर की तकनीक समझाई गई

कार्यक्रम में विशेषज्ञों ने ‘हैंड्स-ओनली सीपीआर’ की तकनीक का प्रदर्शन किया। इसमें आम लोग भी सीख सकते हैं कि आपात स्थिति में कैसे छाती पर प्रति मिनट करीब 100 बार दबाव देना चाहिए। इसके अलावा, जरूरत पड़ने पर मुंह से सांस देना भी सीखा गया, ताकि मस्तिष्क और शरीर के अन्य महत्वपूर्ण अंगों तक ऑक्सीजन पहुंचती रहे, जब तक पेशेवर चिकित्सा सहायता न मिल जाए।

तनाव प्रबंधन का महत्व

सीपीआर देते समय मानसिक दबाव और तनाव को नियंत्रित करना भी जरूरी होता है। वरिष्ठ परामर्शदाता डॉ. मनोज तिवारी ने बताया कि आपातकालीन परिस्थितियों में तनाव से बचना सीपीआर की सफलता के लिए आवश्यक है। उन्होंने तनाव कम करने के व्यावहारिक उपाय भी साझा किए, ताकि व्यक्ति सही तरीके से आपातकालीन सेवा प्रदान कर सके।