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मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ शुक्रवार को वाराणसी में एक अलग ही भूमिका में नजर आए। आमतौर पर प्रशासनिक फैसलों और सख्त अनुशासन के लिए पहचाने जाने वाले योगी इस बार एक शिक्षक के रूप में सामने आए। एक विशेष खुले सत्र में उन्होंने मंत्रिमंडल के सदस्यों को पर्यावरण संरक्षण का पाठ पढ़ाया और प्रकृति के महत्व को रेखांकित किया।

इस कार्यक्रम का आयोजन गंगा नदी के किनारे किया गया, जहां मुख्यमंत्री ने पर्यावरण और पारिस्थितिक संतुलन के विषय में विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया कि जलवायु परिवर्तन और प्रकृति के दोहन से समाज को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य बनता है कि वह पर्यावरण की रक्षा के लिए प्रयास करे।

मुख्यमंत्री ने अपने संबोधन में कहा, "प्रकृति के साथ संतुलन बनाकर चलना हमारी संस्कृति का हिस्सा रहा है। आज आवश्यकता है कि हम परंपरागत ज्ञान को आधुनिक दृष्टिकोण से जोड़कर पर्यावरण संरक्षण को व्यवहारिक बनाएँ।"

इस अवसर पर राज्य के कई वरिष्ठ मंत्री, अधिकारी और स्थानीय जनप्रतिनिधि भी उपस्थित रहे। मुख्यमंत्री द्वारा किए गए संवादात्मक शिक्षण शैली से सभी मंत्रिगण प्रभावित नजर आए। उन्होंने भी पर्यावरण संबंधी अपने विचार साझा किए और राज्य में चल रहे पर्यावरणीय प्रयासों की जानकारी दी।

योगी आदित्यनाथ के इस शिक्षकीय अंदाज को लोगों ने काफी सराहा। कार्यक्रम का उद्देश्य न केवल पर्यावरणीय चेतना को बढ़ावा देना था, बल्कि नेतृत्व स्तर पर प्रकृति संरक्षण की दिशा में जिम्मेदारी का भाव जगाना भी था।

इस पहल को राज्य सरकार की ‘हरित उत्तर प्रदेश’ योजना के तहत एक प्रेरक कदम माना जा रहा है।

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