
दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं, अमेरिका और चीन के बीच चल रहा व्यापारिक युद्ध एक बार फिर सुर्खियों में है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की रेसिप्रोकल टैरिफ नीति ने चीन को बैकफुट पर ला दिया है। चीन ने अब खुले तौर पर अमेरिका से सभी टैरिफ हटाने की अपील की है और इसे "आपसी सम्मान" की दिशा में एक कदम बताया है। मगर क्या ये गुहार दोनों देशों के बीच लंबे समय से चल रहे ट्रेड वॉर को शांत कर पाएगी या ये महज एक और राजनयिक दांव है?
टैरिफ का तीखा खेल
पिछले सप्ताह, ट्रंप ने लैपटॉप और स्मार्टफोन जैसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को टैरिफ से छूट देने की घोषणा की, जिसे कई विश्लेषकों ने उपभोक्ताओं को राहत देने की रणनीति माना। हालांकि, चीन के कई सामानों पर अभी भी 145% का भारी-भरकम टैरिफ लागू है। जवाब में चीन ने शुक्रवार को अमेरिकी आयात पर अपने टैरिफ को 84% से बढ़ाकर 125% कर दिया। ये कदम दोनों देशों के बीच तनाव को और गहराने का संकेत देता है।
चीन के वाणिज्य मंत्रालय के प्रवक्ता ने तल्ख लहजे में कहा कि बाघ के गले में घंटी जिसने बांधी, वही उसे खोल सकता है। उनका इशारा साफ था कि ये टैरिफ युद्ध शुरू करने वाले डोनाल्ड ट्रंप ही इसे खत्म कर सकते हैं। प्रवक्ता ने अमेरिका पर "एकतरफा आर्थिक तानाशाही" का आरोप लगाते हुए अन्य देशों से भी इस नीति के खिलाफ आवाज उठाने की अपील की।
ट्रंप की रणनीति और चीन की जवाबी चाल
अप्रैल के पहले सप्ताह में ट्रंप ने एक व्यापक शुल्क योजना का ऐलान किया था, जिसके तहत कई देशों पर जवाबी टैरिफ लगाए जाने थे। हालांकि, व्हाइट हाउस ने बाद में चीन को छोड़कर बाकी देशों के लिए इन टैरिफ को 90 दिनों के लिए स्थगित कर दिया। इस फैसले ने चीन को और उकसाया, जिसके जवाब में उसने अमेरिकी उत्पादों पर 125% टैरिफ की घोषणा की।
चीन का कहना है कि वो इस ट्रेड वॉर में "विजयी" होगा। मंत्रालय ने साफ किया कि अगर अमेरिका "टैरिफ के नंबर गेम" में उलझता है, तो बीजिंग उसका जवाब नहीं देगा। मगर अगर अमेरिका सीधे तौर पर चीन के हितों को निशाना बनाता है, तो वो चुप नहीं बैठेगा।