
Trade War: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जब से सत्ता की कमान संभाली है। तब से उनकी नीतियों का एक ही मंत्र रहा है- ‘अमेरिका फर्स्ट’। इस मंत्र को हकीकत में बदलने के लिए ट्रंप ने अमेरिकी उत्पादों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाने के नाम पर टैरिफ हथियार का जमकर इस्तेमाल किया है। इस टैरिफ युद्ध का सबसे बड़ा निशाना बना है चीन, जिसे ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल से ही आंखें तरेरते हुए देखा था। मगर 2025 में सत्ता में वापसी के बाद ट्रंप अब सिर्फ बातों तक सीमित नहीं हैं- वो कर दिखाने के मूड में हैं।
2024 में चीन ने 86 लाख करोड़ रुपये का व्यापार सरप्लस हासिल किया, जिसमें 37 लाख करोड़ रुपये का निर्यात अमेरिका को था। मगर ट्रंप की टैरिफ नीति ने इसे मुश्किल बना दिया। चीन अब वैकल्पिक बाजारों पर निर्भर है, जहां उसके सस्ते सामानों ने स्थानीय उद्योगों और नौकरियों को नुकसान पहुंचाया।
कोविड 19 पीरियड में चीन ने मैन्युफैक्चरिंग बढ़ाई, मगर अब ट्रंप इसके जवाब में अमेरिकी बाजार को चीनी सामानों से बंद कर रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इससे अगले वित्तीय वर्ष में चीन की जीडीपी 1% तक गिर सकती है। ट्रंप की नीति से चीन के पास दो रास्ते हैं- नीतिगत बदलाव या नए बाजारों की तलाश- मगर राह आसान नहीं। ये व्यापारिक जंग अब आर्थिक वर्चस्व की लड़ाई बन चुकी है, जिसका असर अमेरिकी ग्राहकों पर भी पड़ सकता है।
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