
बिहार की राजनीति में एक बार फिर हलचल मच गई है। लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने एक ऐसा बयान दिया है। जिसने न सिर्फ सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के कानों में खलबली मचा दी, बल्कि लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार के बाद बिहार की सत्ता की दौड़ में खुद को एक मजबूत दावेदार के रूप में पेश करने की उनकी मंशा को भी उजागर कर दिया।
चिराग ने साफ कहा कि उनकी पार्टी बीजेपी के हिंदुत्व के एजेंडे के साथ नहीं है और धर्म को राजनीति से अलग रखने की वकालत की। चिराग पासवान ने कहा कि धर्म और राजनीति को अलग रखना चाहिए। नहीं तो देश के असल मुद्दों पर बहस नहीं होगी।
बिहार का भविष्य, लालू-नीतीश के बाद चिराग
ये बयान उस समय आया है, जब बीजेपी अपने हिंदुत्व के एजेंडे को बिहार में मजबूत करने की कोशिश कर रही थी। चिराग का ये कदम न केवल बीजेपी के लिए एक झटका है, बल्कि ये भी संकेत देता है कि वे बिहार की उस सेक्युलर राजनीतिक परंपरा को आगे बढ़ाना चाहते हैं, जो यहाँ की मिट्टी में रची-बसी है। बिहार का इतिहास गवाह है कि यहाँ का मतदाता हमेशा से उन चेहरों को पसंद करता रहा है, जो जाति-धर्म के समीकरण से ऊपर उठकर विकास और समावेश की बात करते हैं।
राज्य की सियासत में लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार दो ऐसे नाम हैं, जिन्होंने दशकों तक यहाँ की राजनीति को अपने तरीके से चलाया। मगर अब इन दोनों नेताओं का दौर धीरे-धीरे खत्म होने की ओर बढ़ रहा है। ऐसे में चिराग पासवान, तेजस्वी यादव और कन्हैया कुमार जैसे युवा चेहरे भविष्य की कमान संभालने को तैयार दिखते हैं। चिराग की यह रणनीति उस राजनीतिक शून्य को भरने की कोशिश है, जो लालू और नीतीश के बाद पैदा होगा।
जानें क्या कहते हैं राजनीतिक विशेषज्ञ
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि चिराग ने यहाँ एक दूर की गोटी खेली है। पटना विश्वविद्यालय के प्रोफेसर नवीन कुमार कहते हैं कि चिराग समझ गए हैं कि बिहार में हिंदुत्व का एजेंडा लंबे समय तक नहीं टिक सकता। यहाँ की जनता विकास और रोजगार की बात सुनना चाहती है, न कि मंदिर-मस्जिद की। यदि चिराग का ऐसा ही रवैया रहा तो वो दिन दूर नहीं जब वो राज्य की कुर्सी पर बैठेंगे।