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Old women: गवर्नमेंट बूढ़े लोगों को बेहतर सुविधाएं देने के लिए तरह तरह के नियम और योजनाएं बनाती है, लेकिन फिर भी कुछ कलियुगी संतान अपने माता-पिता की बुढ़ापे बहुत परेशान करते हैं। माता-पिता की देखभाल न करना और उन पर अत्याचार करना कानूनी रूप से गलत है और इसके लिए दोषियों को जेल हो सकती है। इसके बावजूद, सभ्य समाज को शर्मिंदा करने वाली घटनाएं रुकने का नाम नहीं ले रही हैं।

हाल ही में दिल्ली हाई कोर्ट ने 85 वर्षीय महिला की याचिका पर फैसला सुनाया, जिसमें महिला ने अपने बेटे, बहू और पोते-पोतियों के खिलाफ उत्पीड़न का इल्जाम लगाते हुए कहा कि वे उन्हें सम्मानजनक और सुरक्षित वातावरण नहीं दे रहे। अदालत ने उन्हें उस घर को खाली करने का आदेश दिया, जिसमें वे सब एक साथ रह रहे थे।

बूढ़ी अम्मा ने आरोप लगाया कि उसके बेटे और बहू द्वारा उसे और उसके पति को ठीक से देखभाल नहीं दी गई और उन्हें लगातार डिप्रेशन का सामना करना पड़ा। न्यायमूर्ति संजीव नरूला ने 27 अगस्त को दिए गए फैसले में कहा कि बहू को निवास का अधिकार अनिवार्य नहीं है और वरिष्ठ नागरिक अधिनियम के तहत बुजुर्ग नागरिकों को सुरक्षा प्रदान की जाती है, जो उन्हें कष्ट देने वाले निवासियों को बेदखल करने की अनुमति देती है।

जज ने कहा कि ये मामला एक सामान्य सामाजिक समस्या को उजागर करता है, जिसमें वैवाहिक विवाद न केवल दंपति की ज़िंदगी को प्रभावित करता है, बल्कि बूढ़ों लोगों पर भी बुरा असर डालता है। इस मामले में बुजुर्ग याचिकाकर्ताओं को पारिवारिक विवादों के कारण अनावश्यक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, जो वरिष्ठ नागरिकों के कल्याण पर ध्यान देने की आवश्यकता को दर्शाता है।