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Up Kiran, Digital Desk: उत्तर प्रदेश की सियासत में भाजपा के नए प्रदेश अध्यक्ष को लेकर चर्चाओं का बाजार खूब गर्म है। कई राज्यों में पहले ही प्रदेश अध्यक्ष बदले जा चुके हैं और अब यूपी की बारी है। पार्टी को यह अच्छी तरह समझ आ गया है कि लोकसभा चुनाव के बाद बदलते समीकरणों में संगठन की कमान ऐसे नेता को दी जाए जो सभी गुटों को साध सके। यही वजह है कि आम कार्यकर्ता से लेकर वरिष्ठ नेताओं तक की नजर आलाकमान के फैसले पर टिकी है।

खास बात यह है कि पार्टी ने इस पूरी प्रक्रिया की जिम्मेदारी केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल को दी है। यूपी में किस चेहरे को अगली जिम्मेदारी सौंपी जाए, इसका ऐलान वही करेंगे। इस बीच सियासी गलियारों में कई नाम तेजी से उछल रहे हैं। कहीं मंत्री स्वतंत्र देव सिंह की चर्चा है तो कहीं केंद्रीय राज्य मंत्री बीएल वर्मा का नाम लिया जा रहा है। योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री धर्मपाल सिंह और राज्यसभा सांसद बाबूराम निषाद भी संभावित चेहरों में शामिल हैं।

दरअसल, भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती जातीय समीकरणों को साधने की है। समाजवादी पार्टी के पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) कार्ड को देखते हुए भाजपा भी दलित समाज से नया अध्यक्ष उतारने की रणनीति पर विचार कर रही है। ऐसे में डॉ. राम शंकर कठेरिया और विनोद कुमार सोनकर जैसे नेताओं का नाम भी चर्चाओं में है।

संगठन में बदलाव का असर सीधे तौर पर गांव-गांव तक जाएगा क्योंकि आने वाले सालों में पंचायत से लेकर विधानसभा चुनाव तक में यही नया अध्यक्ष जमीनी रणनीति तय करेगा। जनता को भी इस बात में दिलचस्पी है कि भाजपा किसे जिम्मेदारी सौंपकर सामाजिक संतुलन मजबूत करेगी और विकास के वादे कितने धरातल पर उतरेंगे।

हालांकि, अब तक संकेत यही हैं कि पार्टी में अंदरूनी सहमति से ही नया अध्यक्ष चुना जाएगा। आलाकमान नहीं चाहता कि इस मुद्दे पर कोई फूट या गुटबाजी दिखे। साल 2027 का विधानसभा चुनाव भी दूर नहीं है, ऐसे में पार्टी अपने पुराने वोट बैंक को साधने के साथ नए समीकरण जोड़ने की हर कोशिश में जुटी है।

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