Up Kiran, Digital Desk: टेक कंपनी जोहो (Zoho) के फाउंडर और सीईओ श्रीधर वेम्बू ने एक ऐसा बयान दिया है, जिससे मेडिकल जगत में एक नई बहस छिड़ गई है. उन्होंने अपने बच्चों में बढ़ते ऑटिज्म (Autism) के मामलों को बचपन में लगने वाले टीकों (Vaccines) से जोड़ा है. वेम्बू ने यह दावा एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर एक पोस्ट में किया और अपने तर्क के समर्थन में एक ऐसी स्टडी का हवाला दिया, जिसे मेडिकल समुदाय पहले ही खारिज कर चुका है.
क्या कहा श्रीधर वेम्बू ने: श्रीधर वेम्बू ने पोस्ट में लिखा कि उनके खुद के अनुभव और डेटा के विश्लेषण के आधार पर, उन्हें लगता है कि ऑटिज्म के मामले "महामारी" की तरह बढ़ रहे हैं. उन्होंने लिखा, "तीन दशक पहले ऑटिज्म 10,000 में से 1 बच्चे को होता था, आज यह 36 में से 1 को है. यह कोई मामूली वृद्धि नहीं है, यह एक महामारी है."
उन्होंने इस वृद्धि के लिए तीन संभावित कारण बताए:
बचपन में लगने वाले टीके.
प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ (Ultra-processed foods) और कीटनाशकों (pesticides) का बढ़ता उपयोग.
बच्चों में एंटीबायोटिक्स (antibiotics) का बढ़ता इस्तेमाल.
वेम्बू ने यह भी कहा कि वह "वैक्सीन विरोधी" नहीं हैं, लेकिन बच्चों को दी जाने वाली टीकों की संख्या पर सवाल उठा रहे हैं. उन्होंने एंड्रयू वेकफील्ड की 1998 की उस विवादित स्टडी का लिंक भी शेयर किया, जिसमें MMR टीके को ऑटिज्म से जोड़ा गया था.
क्यों है यह स्टडी विवादित?
जिस स्टडी का हवाला श्रीधर वेम्बू दे रहे हैं, वह मेडिकल इतिहास की सबसे बदनाम स्टडीज में से एक है.
वैज्ञानिक धोखाधड़ी: बाद की जांच में पाया गया कि इस स्टडी का डेटा मनगढ़ंत था और इसे लिखने वाले डॉक्टर एंड्रयू वेकफील्ड ने वैज्ञानिक धोखाधड़ी की थी.
मेडिकल लाइसेंस रद्द: इस धोखाधड़ी के कारण वेकफील्ड का मेडिकल लाइसेंस रद्द कर दिया गया था.
हजारों अध्ययनों ने नकारा: वेकफील्ड की स्टडी के बाद, दुनिया भर में हजारों बड़े वैज्ञानिक अध्ययन हुए हैं, और किसी भी अध्ययन में टीकों और ऑटिज्म के बीच कोई संबंध नहीं पाया गया है. दुनिया की सभी बड़ी स्वास्थ्य संस्थाएं, जैसे कि डब्ल्यूएचओ (WHO) और सीडीसी (CDC), टीकों को बच्चों के लिए पूरी तरह से सुरक्षित मानती हैं.
बयान पर आई मिली-जुली प्रतिक्रिया
श्रीधर वेम्बू के इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर लोगों की मिली-जुली प्रतिक्रिया आ रही है. कुछ लोग उनके समर्थन में बात कर रहे हैं और इन मामलों की गहराई से जांच की मांग कर रहे हैं. वहीं, डॉक्टरों और वैज्ञानिकों का एक बड़ा वर्ग उनके इस बयान की आलोचना कर रहा है. उनका कहना है कि इस तरह के गैर-जिम्मेदाराना बयान से लोगों में टीकों को लेकर डर पैदा हो सकता है, जिससे खसरा जैसी खतरनाक बीमारियां फिर से फैल सकती हैं.
यह मामला एक बार फिर विज्ञान और व्यक्तिगत विश्वास के बीच की महीन रेखा को उजागर करता है, जहां एक व्यक्ति का बयान वैज्ञानिक तथ्यों पर भारी पड़ता दिख रहा है.
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