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Up Kiran, Digital Desk: पपीता अक्सर 'सेहत का पावरहाउस' कहा जाता है, अपने औषधीय गुणों के लिए जाना जाता है। न केवल फल, बल्कि इसके बीज भी कई स्वास्थ्य लाभ प्रदान करते हैं। खासकर वर्तमान जीवनशैली में लीवर संबंधी समस्याओं से जूझ रहे लोगों के लिए पपीते का नियमित सेवन बेहद फायदेमंद माना गया है। बाजार में विभिन्न आकार के पपीते आसानी से उपलब्ध हैं, मगर आपने अक्सर देखा होगा कि इन्हें अखबार में लपेटकर रखा जाता है। क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्यों किया जाता है। आईये जानते हैं वजह-

कार्बाइड और एथिलीन गैस का खेल

अखबार में पपीते को लपेटने के मुख्य कारणों में से एक है उसे पकाने में मदद करना। पहले, कच्चे पपीतों को पकाने के लिए अक्सर कार्बाइड का इस्तेमाल किया जाता था। हालांकि, इसके दुष्प्रभावों को देखते हुए फलों को पकाने में कार्बाइड के उपयोग पर अब प्रतिबंध लगा दिया गया है।

आधुनिक समय में, केला, आम और पपीते जैसे फलों को पकाने के लिए एथिलीन गैस का प्रयोग किया जाता है। यह गैस फलों में स्टार्च को शुगर में बदलने से रोकती है, जिससे उनका स्वाद बेहतर होता है। एथिलीन गैस से पकाने के बाद, पपीते को अखबार में लपेटकर रखा जाता है। ऐसा करने से फल से निकलने वाली यह गैस अखबार के अंदर रुक जाती है, जिससे पकने की प्रक्रिया नियंत्रित रहती है।

प्लास्टिक से बेहतर अखबार

यह सवाल उठ सकता है कि अखबार की जगह प्लास्टिक का उपयोग क्यों नहीं किया जाता? दरअसल, यदि कागज के स्थान पर प्लास्टिक का उपयोग किया जाए, तो इससे फल से निकलने वाली नमी बाहर नहीं निकल पाती। नमी के जमाव से फल की ऊपरी सतह चिपचिपी और फफूंदयुक्त हो सकती है, जिससे फल जल्दी खराब हो जाता है। यही कारण है कि अखबार में लपेटना प्लास्टिक की तुलना में कहीं अधिक बेहतर विकल्प है।

प्राकृतिक रूप से पकाने का तरीका

आज भी ग्रामीण इलाकों में पपीते को प्राकृतिक रूप से पकाने के लिए अखबार का इस्तेमाल किया जाता है। पेड़ पर पूरी तरह पकने से पहले तोड़े गए पपीतों को अखबार में लपेटकर कमरे में रख दिया जाता है। इस विधि से पपीता दो से तीन दिनों के भीतर अच्छी तरह से पक जाता है। कार्बाइड और एथिलीन गैस से पकाए गए फलों की तुलना में इस तरीके से पका हुआ पपीता अधिक स्वादिष्ट और गुणकारी होता है।

 

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