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Up Kiran, Digital Desk: भारतीय अर्थव्यवस्था ने हाल के वर्षों में प्रभावशाली वृद्धि दर दर्ज की है, जिसे अक्सर 'आर्थिक उछाल' या 'बूम' के रूप में वर्णित किया जाता है। हालांकि, इस वृद्धि के साथ एक महत्वपूर्ण और चिंताजनक पहलू यह सामने आ रहा है कि इस आर्थिक उछाल का लाभ समाज के सभी वर्गों तक समान रूप से नहीं पहुँच रहा है। ऐसा प्रतीत होता है कि फायदा मुख्य रूप से समाज के एक छोटे से कुलीन वर्ग या अमीर तबके तक ही सीमित है, जबकि आम आदमी, खासकर निम्न और मध्यम आय वर्ग, अभी भी संघर्ष कर रहा है।

यह स्थिति उस आदर्श से बहुत दूर है जहाँ माना जाता  है कि आर्थिक वृद्धि ऐसी होनी चाहिए जो "सभी नावों को ऊपर उठाए, न कि केवल कुलीनों की नौकाओं को"। इस कहावत का सीधा मतलब है कि जब अर्थव्यवस्था बढ़ती है, तो इसका सकारात्मक प्रभाव समाज के हर स्तर पर दिखना चाहिए - नौकरियां मिलनी चाहिए, आय बढ़नी चाहिए, जीवन स्तर बेहतर होना चाहिए - न कि सिर्फ कुछ अमीर लोगों की संपत्ति में बेतहाशा वृद्धि हो।

लेखक इस बात पर ज़ोर देता है कि केवल सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की वृद्धि दर को बढ़ाना पर्याप्त नहीं है। वास्तविक विकास तब होता है जब इस वृद्धि का फल समाज के सबसे निचले तबके तक पहुँचे। जब धन और अवसर कुछ हाथों में केंद्रित हो जाते हैं, तो इससे सामाजिक असमानता बढ़ती है, क्रय शक्ति का व्यापक वितरण नहीं हो पाता, और अर्थव्यवस्था की दीर्घकालिक स्थिरता और सामाजिक सौहार्द खतरे में पड़ जाता है।

चिंता का विषय यह है कि नीतियां अक्सर ऐसी बनती हैं जिनका लाभ उन लोगों को अधिक मिलता है जो पहले से ही साधन संपन्न हैं। कर प्रणाली, निवेश प्रोत्साहन, और यहां तक कि कुछ सरकारी योजनाओं का डिज़ाइन भी अप्रत्यक्ष रूप से असमानता को बढ़ा सकता है। रोजगार सृजन की गति भी उस दर से नहीं बढ़ रही है जिस दर से अर्थव्यवस्था बढ़ रही है, जिससे एक बड़ा युवा वर्ग प्रभावित हो रहा है।

आवश्यकता इस बात की है कि सरकारें और नीति निर्माता ऐसे समावेशी विकास मॉडल पर ध्यान केंद्रित करें जो शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, कौशल विकास और छोटे व्यवसायों के लिए समान अवसर प्रदान करे। आर्थिक नीतियों का लक्ष्य सिर्फ 'विकास' नहीं, बल्कि 'समावेशी विकास' होना चाहिए, जहाँ हर व्यक्ति को अपनी क्षमता का उपयोग करने और आर्थिक प्रगति का लाभ उठाने का मौका मिले। तभी हम यह सुनिश्चित कर पाएंगे कि आर्थिक उछाल वास्तव में 'सभी नावों' को ऊपर उठा रहा है, न कि केवल 'कुलीनों की नौकाओं' को।

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