img

भारत के लोकतंत्र की पारदर्शिता और चुनावी प्रक्रिया की शुचिता को लेकर इन दिनों सुप्रीम कोर्ट की चौखट पर गंभीर बहस जारी है। 1961 की चुनाव संचालन नियमावली में हाल में किए गए संशोधनों को चुनौती देते हुए कांग्रेस नेता जयराम रमेश, सामाजिक कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज और श्‍माम लाल पाल ने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दाखिल की थीं। अब शीर्ष अदालत ने निर्वाचन आयोग को इन याचिकाओं पर तीन सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का समय दिया है।

क्या है मामला?

साल 2024 दिसंबर में केंद्र सरकार ने चुनाव संचालन नियमों के नियम 93(2)(ए) में संशोधन किया था। इस बदलाव के तहत सीसीटीवी फुटेज, वेबकास्टिंग रिकॉर्डिंग, और उम्मीदवारों की वीडियो रिकॉर्डिंग जैसे कुछ इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेजों को अब जनता की सार्वजनिक जांच से बाहर कर दिया गया है। सरकार का दावा है कि यह कदम दस्तावेजों के दुरुपयोग को रोकने के लिए उठाया गया है।

मगर याचिकाकर्ताओं का मानना है कि यह संशोधन चतुराई से किया गया कानूनी फेरबदल है। इसका उद्देश्य चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता को कमजोर करना है।

क्या कहते हैं याचिकाकर्ता?

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश याचिका के प्रमुख याचिकाकर्ता हैं। उनका कहना है कि ये संशोधन चुनावी प्रक्रिया की गिरती साख को और कमजोर करेगा। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से अपील की है कि वह लोकतंत्र की विश्वसनीयता को बहाल करने में हस्तक्षेप करे।

याचिका में यह भी तर्क दिया गया है कि सीसीटीवी फुटेज से किसी मतदाता की मत की गोपनीयता भंग नहीं होती, क्योंकि इससे यह पता नहीं चलता कि किसने किसे वोट दिया। वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी और कपिल सिब्बल ने रमेश की ओर से कोर्ट में दलील पेश की।

कोर्ट में क्या हुआ?

सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने निर्वाचन आयोग और केंद्र सरकार को पहले ही नोटिस जारी कर जवाब मांगा था। गुरुवार को सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह चुनाव आयोग की ओर से पेश हुए। उन्होंने जवाब दाखिल करने के लिए तीन सप्ताह का अतिरिक्त समय मांगा।

कोर्ट ने ये मांग स्वीकार करते हुए मामले की अगली सुनवाई की तारीख 21 जुलाई तय की है।