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Up Kiran, Digital Desk: बिहार की सियासी सरजमीं पर सबसे बड़ी लड़ाई का ऐलान हो गया है। चुनाव आयोग ने सोमवार को विधानसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा कर दी है, जिसके साथ ही राज्य में चुनावी माहौल गरमा गया ,और राजनीतिक दलों ने अपनी कमर कस ली .

बिहार में इस बार दो चरणों में वोट डाले जाएंगे:

पहला चरण: 6 नवंबर

दूसरा चरण: 11 नवंबर

नतीजे: 14 नवंबर को यह साफ हो जाएगा कि पटना की गद्दी पर अगले पांच साल कौन राज करेगा।

तारीखों के ऐलान के साथ ही, अब सबसे बड़ी कशमकश गठबंधन के अंदर सीटों के बंटवारे को लेकर शुरू हो गई है। लेकिन इससे पहले, आइए उन आंकड़ों पर एक नजर डालते हैं जो बता रहे हैं कि हवा का रुख किस तरफ है। हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव के नतीजों ने 2025 की विधानसभा लड़ाई की जमीन लगभग तैयार कर दी है।

अगर लोकसभा वाला नतीजा दोहराया गया, तो क्या होगा?

बिहार में कुल 243 विधानसभा सीटें हैं, और सरकार बनाने के लिए जादुई आंकड़ा 122 है। लोकसभा चुनाव में मिले वोटों को अगर विधानसभा सीटों के हिसाब से देखें, तो तस्वीर कुछ ऐसी बनती है:

NDA की सुपर-स्ट्रांग पोजीशन, आँकड़े देख चौंक जाएंगे

एनडीए, जिसमें बीजेपी, जेडीयू और चिराग पासवान की एलजेपी (आरवी) जैसी पार्टियां शामिल हैं, लोकसभा चुनाव में 174 विधानसभा सीटों पर आगे रही। यह आंकड़ा जादुई नंबर 122 से कहीं ज़्यादा यह साफ इशारा देता है कि अगर यही ट्रेंड जारी रहा, तो एनडीए बहुत आसानी से जीत हासिल कर लेगी।

जेडीयू: नीतीश कुमार की पार्टी का प्रदर्शन सबसे शानदार रहा, जो 74 विधानसभा सीटों पर आगे रही।

बीजेपी: बीजेपी 67 सीटों पर बढ़त के साथ दूसरे नंबर पर रही।

एलजेपी-आरवी: वहीं, चिराग पासवान की पार्टी ने 29 सीटों पर बढ़त हासिल कर के सबको चौंका दिया।

हम: जीतन राम मांझी की पार्टी 4 सीटों पर आगे रही।

महागठबंधन की राह मुश्किल, तेजस्वी के लिए बड़ी चुनौती: दूसरी तरफ, तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाले महागठबंधन को लोकसभा चुनाव में सिर्फ 9 सीटें मिलीं। हालांकि आरजेडी का वोट शेयर (22.14%) बीजेपी (20.52%) और जेडीयू (18.52%) दोनों से ज़्यादा रहा, लेकिन यह वोट सीटों में नहीं बदल सके।

आरजेडी: तेजस्वी यादव की पार्टी सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद विधानसभा सीटों की बढ़त के मामले में काफी पीछे रह गई।

कांग्रेस और लेफ्ट: कांग्रेस और सीपीआई (एमएल) ने मिलकर 5 सीटें जीतीं, लेकिन विधानसभा में उनका असर भी सीमित ही नजर आया।

यह सिर्फ लोकसभा के आँकड़े हैं और विधानसभा का इलेक्शन पूरी तरह से स्थानीय मुद्दों, उम्मीदवारों के चेहरे और जातिगत समीकरणों पर लड़ा जाता । लेकिन एक बात तो साफ है, इन नतीजों ने एनडीए को एक मनोवैज्ञानिक बढ़त दे दी  वहीं तेजस्वी यादव और उनकी पार्टी के लिए खतरे की घंटी बजा दी है। अब असली लड़ाई 6 और 11 नवंबर को देखने को मिलेगी।