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Up Kiran, Digital Desk: आमतौर पर, जब हम शिक्षा में नैतिकता की बात करते हैं, तो हमारा ध्यान तुरंत परीक्षाओं में होने वाली अनुचित प्रथाओं - जैसे नकल या पेपर लीक - पर चला जाता है। समाज और शैक्षिक संस्थानों का ध्यान अक्सर इस बात पर केंद्रित रहता है कि परीक्षाओं का संचालन कितनी निष्पक्षता और ईमानदारी से हो रहा है।

लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि शिक्षा में नैतिकता का दायरा केवल परीक्षा आचरण तक सीमित नहीं रहना चाहिए। इसे शिक्षण के तरीके, पाठ्यक्रम के विकास, संस्थागत प्रशासन, और छात्रों और शिक्षकों के बीच संबंधों सहित पूरे शिक्षा तंत्र में व्यापक रूप से शामिल करने की आवश्यकता है।

क्योंकि शिक्षा का उद्देश्य केवल ज्ञान देना नहीं, बल्कि छात्रों में नैतिक मूल्य और एक ज़िम्मेदार नागरिक बनने की भावना विकसित करना भी है। एक नैतिक शैक्षिक वातावरण विश्वास, निष्पक्षता और ईमानदारी को बढ़ावा देता है, जो छात्रों के सर्वांगीण विकास के लिए महत्वपूर्ण है। यदि नैतिकता केवल परीक्षा पास करने या नियमों का पालन करने तक सीमित रहती है, तो हम एक ऐसी पीढ़ी तैयार करने में विफल हो सकते हैं जो जीवन के हर क्षेत्र में नैतिक सिद्धांतों का पालन करे।

 समय की मांग है कि हम शिक्षा में नैतिकता की अपनी समझ को विकसित करें और इसे केवल नियमों का पालन करने या कदाचार से बचने तक ही न देखें। एक व्यापक नैतिक ढांचा ही यह सुनिश्चित कर सकता है कि हमारा शिक्षा तंत्र सही मायने में ज्ञान का प्रसार करे और ऐसे नागरिकों का निर्माण करे जो समाज के लिए मूल्यवान हों और नैतिक चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार रहें।

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