Up Kiran, Digital Desk: कहते हैं कि सच्ची दोस्ती मुश्किल वक्त में ही पहचानी जाती है। आज यह कहावत अफगानिस्तान के सूखे और पानी के लिए तरसते हेरात प्रांत में बिल्कुल सच साबित हो रही है। यहां तालिबान का राज है, दुनिया के ज्यादातर देशों ने मुंह फेर लिया है, लेकिन भारत की दी हुई एक 'अमानत' आज भी वहां के हजारों किसानों के लिए जिंदगी बचाने वाली 'संजीवनी' बनी हुई है।
हम बात कर रहे हैं अफगान-भारत मैत्री बांध की, जिसे पूरी दुनिया सलमा बांध के नाम से भी जानती है। यह सिर्फ ईंट और कंक्रीट का एक ढांचा नहीं, बल्कि भारत और अफगानिस्तान के लोगों के बीच के गहरे रिश्ते का एक जीता-जागता सबूत है।
सूखती उम्मीदों को मिला पानी का सहारा
हेरात प्रांत इस वक्त गंभीर सूखे की चपेट में है। किसानों की आंखों के सामने उनकी गेहूं की फसलें दम तोड़ रही थीं, जमीन प्यास से फट रही थी और उनकी महीनों की मेहनत बर्बाद होने की कगार पर थी। ऐसे निराशा भरे माहौल में, हेरात नदी बेसिन प्राधिकरण ने सलमा बांध से पानी छोड़ने का फैसला किया।
यह खबर किसानों के लिए किसी चमत्कार से कम नहीं थी। बांध से छोड़ा गया पानी अब नहरों के जरिए उनके सूखे खेतों तक पहुंचेगा और उनकी मरती हुई फसलों को एक नई जिंदगी देगा। यह पानी सिर्फ उनकी फसल नहीं बचाएगा, बल्कि उनके परिवारों के लिए रोजी- रोटी और उम्मीद भी बचाएगा।
क्या है यह 'दोस्ती का बांध'?
यह कोई मामूली बांध नहीं है। इसे भारत ने अफगानिस्तान के लोगों के लिए एक तोहफे के तौर पर बनाया था।
इस बांध का उद्घाटन 2016 में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अफगानिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अशरफ गनी ने मिलकर किया था।
इसका निर्माण भारत ने अपने खर्चे पर, मुश्किल हालातों के बीच करवाया था ताकि हेरात के लोगों को सिंचाई के लिए पानी और बिजली मिल सके।
यह बांध सिर्फ बिजली और पानी ही नहीं देता, बल्कि यह भारत की उस प्रतिज्ञा का प्रतीक है कि वह हमेशा अफगान लोगों के साथ खड़ा रहेगा, चाहे वहां सरकार किसी की भी हो।
आज के समय में यह क्यों है इतना खास?
आज जब अफगानिस्तान एक बेहद कठिन दौर से गुजर रहा है, तब भारत द्वारा बनाए गए इस बांध का महत्व और भी बढ़ जाता है। यह दिखाता है कि विकास के जो काम दिल से और दोस्ती की भावना से किए जाते हैं, वे सत्ता बदलने के बाद भी लोगों की सेवा करते रहते हैं।
यह पानी की धारा सिर्फ हेरात के खेतों को ही नहीं सींच रही, बल्कि दोनों देशों के लोगों के दिलों में दोस्ती और विश्वास को भी सींच रही है। यह इस बात का सबूत है कि भले ही सरहदों पर राजनीति बदल जाए, लेकिन दिलों में बसी दोस्ती की नमी कभी नहीं सूखती।

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