
Up Kiran, Digital Desk: भारत में लाखों बच्चों के जीवन को प्रभावित करने वाले कुपोषण के खिलाफ जंग में देश के दो प्रतिष्ठित संस्थानों ने एक बड़ा हथियार तैयार किया है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) जोधपुर और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) जोधपुर के शोधकर्ताओं ने मिलकर एक अत्याधुनिक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) मॉडल विकसित किया है, जो बच्चों में कुपोषण का पता लगाने के पारंपरिक तरीकों में क्रांतिकारी बदलाव लाने की क्षमता रखता है। यह तकनीक न केवल बेहद सटीक है, बल्कि इतनी आसान है कि इसे कोई भी स्वास्थ्य कार्यकर्ता अपने स्मार्टफोन पर इस्तेमाल कर सकता है।
क्यों थी इस नई तकनीक की ज़रूरत?
अब तक, बच्चों में कुपोषण के स्तर का आकलन करने के लिए वॉटरलो क्लासिफिकेशन (Waterlow Classification) और कम्पोजिट इंडेक्स ऑफ एन्थ्रोपोमेट्रिक फेलियर (CIAF) जैसे पारंपरिक तरीकों का इस्तेमाल किया जाता था। ये विधियां न केवल जटिल और समय लेने वाली थीं, बल्कि इनमें कई तरह के मानवीय भूल की भी गुंजाइश रहती थी। फील्ड में काम करने वाले स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के लिए इन जटिल गणनाओं को सटीक रूप से करना एक बड़ी चुनौती थी, जिससे अक्सर बच्चों की स्थिति का गलत आकलन हो जाता था।
कैसे काम करता है यह 'डिजिटल डॉक्टर'?
आईआईटी और एम्स के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित यह डीप लर्निंग-आधारित AI मॉडल इस पूरी प्रक्रिया को अविश्वसनीय रूप से सरल बना देता है।
सिर्फ तीन जानकारी ज़रूरी: इस मॉडल को बच्चे में कुपोषण का स्तर बताने के लिए सिर्फ तीन बुनियादी जानकारियों की आवश्यकता होती है - उम्र, वजन और ऊंचाई (Age, Weight, and Height)।
तुरंत और सटीक परिणाम: जैसे ही यह तीन जानकारी AI मॉडल में डाली जाती हैं, यह तुरंत और उच्च सटीकता के साथ बच्चे के पोषण की स्थिति का विश्लेषण कर लेता है।
गलतियों की कोई गुंजाइश नहीं: यह तकनीक मानवीय गणना की आवश्यकता को समाप्त कर देती है, जिससे गलतियों की संभावना लगभग शून्य हो जाती है।
इस प्रोजेक्ट का नेतृत्व करने वाले IIT जोधपुर के डॉ. सुमित कालरा और AIIMS जोधपुर के डॉ. अरुण कुमार शर्मा की टीमों ने इस मॉडल को एक "मल्टी-इनपुट न्यूरल नेटवर्क" के रूप में वर्णित किया है, जिसे विशेष रूप से भारतीय बच्चों के डेटा पर प्रशिक्षित किया गया है।
देश के लिए कैसे होगा यह गेम-चेंजर?
यह अविष्कार भारत में कुपोषण के खिलाफ लड़ाई में एक गेम-चेंजर साबित हो सकता है:
जमीनी स्तर पर सशक्तीकरण: अब आंगनवाड़ी और आशा कार्यकर्ता जैसे फ्रंटलाइन हेल्थ वर्कर भी आसानी से अपने क्षेत्र के बच्चों में कुपोषण का सटीक आकलन कर पाएंगे।
समय पर इलाज: जल्दी और सटीक पहचान का मतलब है कि कुपोषित बच्चों को सही समय पर सही इलाज और पोषण संबंधी सहायता मिल पाएगी, जिससे लाखों जानें बचाई जा सकती हैं।
नीति-निर्माण में मदद: इस तकनीक से प्राप्त सटीक डेटा सरकार को कुपोषण से निपटने के लिए बेहतर और अधिक प्रभावी नीतियां बनाने में मदद करेगा।