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दमोह के मिशन अस्पताल में सामने आया एक सनसनीखेज मामला पूरे प्रदेश को झकझोर कर रख देने वाला है। नरेंद्र विक्रमादित्य यादव नाम के शख्स ने खुद को ब्रिटेन से लौटे हुए हृदय रोग विशेषज्ञ के रूप में पेश किया और "डॉ. एन जॉन कैम" नाम से काम करते हुए अस्पताल में करीब 45 दिनों तक दर्जनों मरीजों का इलाज किया। सबसे खतरनाक बात ये है कि उसके पास न तो वैध मेडिकल लाइसेंस था, न ही कोई प्रमाणित डिग्री।

फर्जी पहचान के पीछे छिपा एक घातक सच

"डॉ. एन जॉन कैम" नाम के पीछे छुपा असली शख्स नरेंद्र विक्रमादित्य यादव है, जिसने चिकित्सा पेशे की गरिमा को तार-तार कर दिया। उसने फर्जी नाम से न केवल सर्जरी की, बल्कि 15 में से सात मरीजों की जान भी ले ली। यह आंकड़ा सिर्फ एक अस्पताल में 45 दिनों के भीतर का है। इतना गंभीर मामला सामने आने के बाद स्वास्थ्य विभाग में हड़कंप मच गया है।

अस्पताल प्रशासन का कहना है कि न केवल उसने मरीजों की जान जोखिम में डाली, बल्कि अस्पताल की संपत्ति भी चुरा ली। उस पर पोर्टेबल इको मशीन चोरी करने का आरोप है, जिसकी कीमत पांच से सात लाख रुपये बताई जा रही है। इसकी पुलिस में शिकायत भी दर्ज की गई है।

डिग्री और रजिस्ट्रेशन सब फर्जी

जांच में सामने आया कि नरेंद्र ने जो एमबीबीएस का रजिस्ट्रेशन नंबर इस्तेमाल किया, वह असल में एक महिला डॉक्टर का है। वहीं, उसकी बाकी डिग्रियों के लिए कोई विश्वसनीय दस्तावेज उपलब्ध नहीं हैं। वरिष्ठ पुलिस अधिकारी एसपी श्रुतकीर्ति सोमवंशी ने बताया कि इस व्यक्ति की पहचान ही फर्जी है। उसके मोबाइल, टैबलेट और ईमेल की जांच से साफ हो गया है कि वह वर्षों से इस धोखाधड़ी को अंजाम दे रहा था।

शक है कि वह बीते सात से आठ साल से मध्यप्रदेश में खुद को डॉक्टर बताकर इलाज कर रहा था। फिलहाल उसे पांच दिन की पुलिस हिरासत में भेजा गया है और उससे सघन पूछताछ जारी है।

पुराने मामलों से भी जुड़ रहे तार

इस फर्जी डॉक्टर की कहानी यहीं खत्म नहीं होती। सूत्रों का दावा है कि साल 2006 में उसने छत्तीसगढ़ विधानसभा के तत्कालीन अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद शुक्ला का भी इलाज किया था। वह अपोलो अस्पताल में बतौर सर्जन काम कर रहा था, और उस समय भी आठ मरीजों की मौत हुई थी। उस दौरान भी उसकी डिग्री पर सवाल उठे थे, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो पाई।

अब, छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. प्रमोद तिवारी ने अपोलो अस्पताल को कारण बताओ नोटिस जारी किया है। अस्पताल से पूछा गया है कि बिना डिग्री वाले व्यक्ति को कैसे नियुक्त किया गया और किन दस्तावेजों के आधार पर उसे ऑपरेशन करने की अनुमति दी गई। अस्पताल से यह भी पूछा गया है कि पूर्व विधानसभा अध्यक्ष सहित जिन मरीजों की मौत हुई, उनमें उस फर्जी डॉक्टर की क्या भूमिका थी।

व्यवस्था पर बड़ा सवाल

यह पूरा मामला देश के चिकित्सा तंत्र की गंभीर खामियों को उजागर करता है। एक फर्जी डॉक्टर इतनी आसानी से इतने बड़े अस्पतालों में सर्जरी कर लेता है और मरीजों की जान ले लेता है—यह दर्शाता है कि हमारे सिस्टम में कहीं न कहीं बड़ी लापरवाही है। चाहे वो अस्पताल की ओर से डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन हो या मेडिकल काउंसिल की सतर्कता, दोनों ही स्तरों पर गंभीर चूक हुई है।

इस घोटाले से न सिर्फ मरीजों का विश्वास टूटा है, बल्कि पूरे चिकित्सा जगत पर भी सवाल खड़े हो गए हैं। अब देखना ये है कि प्रशासन और मेडिकल काउंसिल इस मामले में क्या कदम उठाती है, ताकि भविष्य में किसी और को इस तरह के धोखे का शिकार न होना पड़े।