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Up Kiran, Digital Desk: बिहार में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं। अनुमान है कि अक्टूबर-नवंबर तक मतदान की तारीखों का ऐलान हो जाएगा। ऐसे में चुनावी तैयारियों का सबसे अहम चरण विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) चर्चा में है। यह प्रक्रिया इस बार बेहद सीमित अवधि में संपन्न होनी है, जिस पर विपक्ष लगातार सवाल उठा रहा है।
विपक्ष की आपत्ति और चुनाव आयोग की तैयारी
भारत निर्वाचन आयोग ने 25 जून से 30 सितंबर 2025 तक SIR चलाने का कार्यक्रम तय किया है। यानी करीब 97 दिनों में मतदाता सूची का पूरा संशोधन, दावे-आपत्तियों का निपटारा और अंतिम सूची का प्रकाशन करना होगा। विपक्ष का कहना है कि इतने कम समय में घर-घर जाकर मतदाताओं का सत्यापन करना, आवश्यक दस्तावेज इकट्ठा करना और अंतिम सूची तैयार करना संभव नहीं है।
चुनाव आयोग का तर्क है कि कर्मचारियों को प्रशिक्षण से लेकर घर-घर सर्वे, दस्तावेजों का संकलन, मसौदा सूची जारी करना और आपत्तियों का निपटारा—all steps इस अवधि में समायोजित किए जा सकते हैं।
2003 में हुई थी लंबी प्रक्रिया
अगर हम इतिहास पर नज़र डालें तो स्थिति बिल्कुल अलग दिखाई देती है। साल 2002-03 में जब बिहार समेत झारखंड, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और पंजाब जैसे सात राज्यों में SIR कराया गया था, तब इस पूरी प्रक्रिया के लिए लगभग 243 दिन यानी पूरे आठ महीने का समय दिया गया था।
उस समय मतदाता सूची में करीब 4.96 करोड़ नए मतदाता शामिल हुए थे। मतदाता पहचान पत्र (EPIC) को मुख्य आधार मानकर सत्यापन किया गया था और दस्तावेजों की अनिवार्यता अपेक्षाकृत कम थी। यही वजह रही कि प्रक्रिया लंबी लेकिन समावेशी कही गई।
अब चुनौती क्यों ज़्यादा कठिन है
इस बार केवल तीन महीने में वह पूरा काम करना है, जिसके लिए पहले आठ महीने का वक्त मिलता था।
25 जून से घर-घर सर्वे और प्रशिक्षण
1 अगस्त को मसौदा सूची जारी
अगस्त महीने भर दावे-आपत्तियाँ
सितंबर में निपटारा, और
1 अक्टूबर तक अंतिम सूची प्रकाशन
इसके तुरंत बाद चुनाव कार्यक्रम का ऐलान होने की उम्मीद है।
बड़ा सवाल
सवाल यह है कि जब 2003 में अपेक्षाकृत आसान दस्तावेज़ी स्थितियों के बावजूद आठ महीने लगे थे, तो अब सख्त मानकों और सीमित संसाधनों में आयोग तीन महीने में कितनी सटीक मतदाता सूची बना पाएगा? यही वह बिंदु है जिस पर सियासी बहस और तेज़ हो रही है।
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