Up Kiran, Digital Desk: प्रयागराज के जिलाधिकारी मनीष वर्मा का एक वीडियो इन दिनों सोशल मीडिया पर छाया हुआ है, जिसमें वह एक साधु के लिए चूल्हे पर रोटी बनाते हुए नजर आ रहे हैं। इस दृश्य ने कई सवाल खड़े किए हैं, क्योंकि सामान्यतः प्रशासनिक अधिकारी ऐसे कामों में दिखाई नहीं देते। जब डीएम खुद साधु के लिए रोटी बना रहे हों, तो यह घटना बिना चर्चा के नहीं रह सकती थी। कुछ लोग इसे उनके मानवता के उदाहरण के रूप में देख रहे हैं, जबकि अन्य इसे राजनीति से जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं।
वायरल वीडियो और राजनीति की चालें
जैसे ही यह वीडियो वायरल हुआ, प्रयागराज के प्रशासन और जिले के विकास कार्यों पर सवाल उठने लगे। वहीं, मंगलवार को उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य अचानक माघ मेले की तैयारियों का निरीक्षण करने पहुंचे। माघ मेला हर साल लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है, लेकिन मौर्य ने देखा कि प्रशासन की तैयारियां बेहद कमजोर थीं। प्रशासन द्वारा किए गए दावों की सच्चाई जमीन पर कुछ और ही थी। इस दौरान जब मौर्य ने जिलाधिकारी को चूल्हे पर रोटी बनाने से रोका और वास्तविक स्थिति पर ध्यान देने की सलाह दी, तो यह कयास लगाए गए कि यह विवाद उत्तर प्रदेश की सत्ता में चल रही अंदरूनी राजनीति को लेकर है।
संतुआ बाबा की भूमिका: राजनीति में उनका असर
अब सवाल उठता है कि इस साधु का राजनीति से क्या संबंध है? दरअसल, जिस साधु के लिए जिलाधिकारी मनीष वर्मा ने रोटी बनाई, वह संतुआ बाबा के नाम से प्रसिद्ध हैं, जो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के करीबी माने जाते हैं। योगी और संतुआ बाबा की मित्रता जगजाहिर है। संतुआ बाबा का धार्मिक और सामाजिक प्रभाव काफी मजबूत है, और यही वजह है कि उनकी उपस्थिति ने इस मामले को एक राजनीतिक मोड़ दे दिया है।
संतुआ बाबा को विष्णुस्वामी संप्रदाय का प्रमुख माना जाता है और उनका दायरा केवल धार्मिक कार्यों तक सीमित नहीं है। उनका राजनीतिक प्रभाव भी है, और यह प्रभाव खासकर योगी आदित्यनाथ के साथ उनके संबंधों के कारण बढ़ा है। इस प्रकार, संतुआ बाबा का नाम जुड़ने से उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य और जिलाधिकारी मनीष वर्मा के बीच उभरे विवाद को एक अलग दिशा मिल गई।
योगी और मौर्य के बीच की दरार
योगी आदित्यनाथ और केशव प्रसाद मौर्य के बीच का तनाव कोई नई बात नहीं है। 2017 में जब बीजेपी को भारी जीत मिली थी, तो केशव मौर्य ने मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवारी जताई थी, लेकिन अचानक योगी आदित्यनाथ को चुना गया। इस फैसले ने दोनों नेताओं के बीच दरार की शुरुआत की। इसके बाद से ही यह राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता बढ़ती गई। मौर्य को उपमुख्यमंत्री पद जरूर मिला, लेकिन कई अहम विभाग उनसे छिन गए।
2024 के चुनाव और मौर्य का बयान
2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को कुछ सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था, और इस दौरान मौर्य ने एक बयान दिया था, जिसे योगी सरकार पर अप्रत्यक्ष हमला माना गया। मौर्य ने कहा था कि पार्टी संगठन सरकार से बड़ा है। इसके बाद से यह और भी स्पष्ट हो गया कि दोनों नेताओं के बीच की दूरियां अब सार्वजनिक हो चुकी हैं।
हालांकि, 2025 में दोनों नेताओं के बीच तनावपूर्ण स्थिति पूरी तरह से समाप्त नहीं हुई है, फिर भी किसी बड़े संघर्ष के संकेत नहीं मिले हैं। दोनों नेताओं ने कई बार एक-दूसरे के कामों की सराहना की है, लेकिन इन घटनाओं को लेकर राजनीतिक गलियारों में चर्चाएं लगातार जारी हैं।
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