img

Up Kiran, Digital Desk: छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में एक नाम इन दिनों लोगों की जुबान पर है—जागेश्वर प्रसाद अवधिया। 83 साल की उम्र में उन्होंने जो सहा, शायद ही कोई सह पाए। उनके चेहरे की झुर्रियां और आंखों का दर्द उस अन्याय की कहानी कहते हैं, जो एक झूठे आरोप ने उनके जीवन में भरा।

कौन हैं जागेश्वर प्रसाद अवधिया

जन्म 10 मई 1943 को हुआ। वे मध्यप्रदेश स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन (MPSRTC) में बिल सहायक पद पर कार्यरत थे। अपने समय में ईमानदारी की मिसाल माने जाते थे। उनके काम को लेकर कभी कोई शिकायत नहीं आई—जब तक साल 1986 में सब कुछ बदल नहीं गया।

रिश्वत का झूठा आरोप

साल था 1986। एक कर्मचारी अशोक कुमार वर्मा ने बिल पास कराने के लिए दबाव बनाया। जागेश्वर प्रसाद ने नियमों का हवाला दिया—जब तक ऊपर से आदेश नहीं, बिल पास नहीं होगा। अगले ही दिन वही कर्मचारी 20 रुपए लेकर आया। जागेश्वर ने गुस्से में पैसे लौटा दिए। फिर अशोक ने जबरन 50-50 के दो नोट उनकी जेब में ठूंसने की कोशिश की।

इसी बीच, लोकायुक्त की विजिलेंस टीम ने दबिश दी। बिना किसी जांच के जागेश्वर को गिरफ्तार कर लिया गया। आरोप लगाया गया कि उन्होंने 100 रुपए की रिश्वत ली है।

सालों तक चला कोर्ट का संघर्ष

2004 में ट्रायल कोर्ट ने उन्हें दोषी ठहराते हुए एक साल की सजा और 1000 रुपए जुर्माना सुनाया। इस फैसले ने उनकी जिंदगी को तहस-नहस कर दिया।

नौकरी में प्रमोशन रुक गया

वेतन घट गया

बच्चों की पढ़ाई अधूरी रह गई

पत्नी भी दुख से टूट गई

पर उम्मीद नहीं छोड़ी

जागेश्वर ने हार नहीं मानी। उन्होंने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। आखिरकार, जस्टिस बीडी गुरु की बेंच ने पाया कि अभियोजन पक्ष यह साबित ही नहीं कर सका कि उन्होंने रिश्वत मांगी या ली।

2025 में कोर्ट ने उन्हें पूरी तरह से निर्दोष घोषित किया