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Up Kiran, Digital Desk: देश में आय पर कर सिस्टम को लेकर वक्त वक्त पर सवाल उठते रहे हैं मगर हाल ही में गुरुग्राम की एक कंपनी के सीईओ ने इस मुद्दे पर जो बात कही है उसने एक नई बहस छेड़ दी है। उनका कहना है कि जहाँ किसानों और सड़क पर सामान बेचने वालों को कमाई पर कोई टैक्स नहीं देना होता वहीं कॉर्पोरेट और नौकरीपेशा लोगों को भारी-भरकम टैक्स चुकाना पड़ता है। उन्होंने अपनी बात में GST का भी जिक्र किया है।
सीईओ का सवाल, करोड़ों कमाने वाले भी टैक्स नहीं देते
इस सीईओ का नाम है वीरेश सिंह (Veeresh Singh)। उन्होंने लिंक्डइन पर एक पोस्ट लिखकर इनकम टैक्स सिस्टम पर गंभीर सवाल उठाए हैं। वीरेश ने अपनी पोस्ट में लिखा है कि अगर कोई किसान साल में 1 करोड़ रुपये कमाता है तो उसे कोई टैक्स नहीं देना होता। सड़क पर सामान बेचने वाले लोग भी जिनमें से कुछ करोड़ों कमाते हैं अक्सर टैक्स नहीं देते। इनमें चाय बेचने वाले फूड स्टॉल लगाने वाले आदि शामिल हैं।
उन्होंने आगे लिखा कि इनमें से ज़्यादातर लोग बिना किसी लिखा-पढ़ी के काम करते हैं। वे डिजिटल बैंकिंग या GST जैसे सिस्टम से बाहर रहते हैं जिसकी वजह से उनकी कमाई का कोई हिसाब नहीं होता। यह बात सोचने पर मजबूर करती है कि क्या वाकई एक बड़ा तबका टैक्स दायरे से बाहर है।
नौकरी करने वालों की पीड़ा, सबसे ज़्यादा बोझ इन्हीं पर
वीरेश सिंह ने किसान और स्ट्रीट वेंडर की तुलना जॉब और बिजनेस करने वालों से की है। उन्होंने अपनी पोस्ट में आगे लिखा है कि अब एक नौकरी करने वाले आदमी को देखिए। वह सुबह 7 बजे उठता है ट्रैफिक में फंसता है काम पूरा करने के लिए भागता है और EMI भरता है। मगर जब देश के विकास के लिए पैसे देने की बात आती है तो सबसे ज़्यादा बोझ नौकरी करने वाले लोग उठाते हैं। उन्हें कोई छूट भी नहीं मिलती।
यह बात नौकरीपेशा मध्यम वर्ग की एक बड़ी संख्या को शायद बहुत हद तक सही लगेगी। वे अपनी आय पर हर तरह के टैक्स देते हैं जबकि दूसरों को कई तरह की छूट मिलती है।
कंपनी और कर्मचारी को कितना टैक्स, चौंक जाएंगे आप
वीरेश सिंह ने अपनी पोस्ट में कंपनी और कर्मचारी की कमाई पर लगने वाले टैक्स के बारे में भी लिखा है जो आंकड़ों के साथ इस बोझ को और स्पष्ट करता है कि अगर किसी प्राइवेट कंपनी को एक करोड़ रुपये का मुनाफा होता है तो उसे करीब 25 लाख रुपये टैक्स के रूप में चुकाने होते हैं। वहीं सालाना एक करोड़ की सैलरी वाले कर्मचारी को करीब 31 लाख रुपये का टैक्स देना पड़ता है। उन्होंने कटाक्ष करते हुए लिखा है "कोई शॉर्टकट नहीं। बस मेहनत करो और टैक्स भरो।" यह लाइन उन लोगों की हताशा को दर्शाती है जो अपनी पूरी कमाई का एक बड़ा हिस्सा टैक्स के रूप में चुकाते हैं।
मध्यम वर्ग की 'चुपचाप चीख'
वीरेश सिंह ने इस बात को माना कि भारत को किसानों की ज़रूरत है सड़क पर सामान बेचने वालों की ज़रूरत है और हाँ भारत के कारोबार भी ज़रूरी हैं। मगर उन्होंने जो सबसे अहम बात कही वह यह थी कि कहीं न कहीं नौकरी करने वाला मध्यम वर्ग चुपचाप चिल्ला रहा है। वे सबसे ज़्यादा योगदान करते हैं सबसे कम शिकायत करते हैं और अक्सर उन्हें सबसे कम मिलता है।
आंकड़े क्या कहते हैं, चौंकाने वाला सच
वीरेश सिंह ने अपनी पोस्ट में कुछ आंकड़ों का भी हवाला दिया है जो उनकी बात को और मज़बूती देते हैं। उन्होंने लिखा है कि CBDT के 2023-24 के आंकड़ों के अनुसार केवल 3.6 करोड़ भारतीयों ने इनकम टैक्स रिटर्न भरा। इनमें से लगभग 1.5 करोड़ नौकरी करने वाले लोग थे। मगर उन्होंने कुल इनकम टैक्स का 60% से ज़्यादा दिया!
यह आंकड़ा वाकई चौंकाने वाला है। अगर इतने कम लोग टैक्स भर रहे हैं और उनमें से भी नौकरीपेशा लोग इतना बड़ा हिस्सा दे रहे हैं तो सवाल उठना लाज़मी है कि क्या हमारा टैक्स सिस्टम वाकई निष्पक्ष है।
यह बहस सिर्फ एक सीईओ की पोस्ट से शुरू हुई है मगर यह एक ऐसे मुद्दे को उठाती है जिस पर गंभीरता से विचार करने की ज़रूरत है। क्या टैक्स सिस्टम में बदलाव की ज़रूरत है ताकि बोझ को अधिक समान रूप से बांटा जा सके।
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