Up Kiran, Digital Desk: रोहतास जिले के काराकाट प्रखंड के बुटवल गांव में रहने वाले डोमन रवानी ने समाज की परंपराओं को नई दिशा दी है। जहां जितिया व्रत अब तक केवल माताओं से जुड़ा समझा जाता था, वहीं बीते 12 वर्षों से डोमन इसे पिता की जिम्मेदारी के रूप में निभा रहे हैं। उनका संकल्प यह साफ संदेश देता है कि संतान के लिए त्याग और समर्पण केवल मां तक सीमित नहीं है।
एक घटना जिसने बदल दी जिंदगी
करीब 12 साल पहले अचानक पत्नी के गुजर जाने के बाद डोमन के जीवन में गहरा खालीपन आ गया। उस समय उनके तीन छोटे बच्चे पूजा, महेश और शंकर अपनी मां की देखभाल और प्यार से वंचित हो गए। आम तौर पर मां द्वारा ही किए जाने वाले इस पर्व को बंद करने के बजाय डोमन ने खुद इसे आगे बढ़ाने का फैसला किया।
कठिन तपस्या का अनुभव
डोमन बताते हैं कि इस व्रत में पूरे 24 घंटे तक न अन्न मिलता है और न ही जल ग्रहण किया जाता है। यह तपस्या शरीर और मन, दोनों पर भारी पड़ती है। बावजूद इसके, बच्चों की सुरक्षा और खुशहाली के लिए उनका संकल्प हर मुश्किल से मजबूत होता जाता है। उनका मानना है कि पत्नी भले ही अब साथ नहीं हैं, लेकिन बच्चों की परवरिश और आशीर्वाद देने की जिम्मेदारी वे पूरी निष्ठा से निभाते रहेंगे।
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